सालों पहले धरती पर एक राक्षस राजा था, जिसका नाम था जालंधर। जालंधर की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। वह सभी देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार करना चाहता था। जालंधर की शादी वृंदा से हुई थी, जो भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी।
वृंदा एक पतिव्रता औरत थी, जिसकी पवित्रता की वजह से आज तक कोई भी देवता जालंधर को हरा नहीं पाया था। जालंधर के बढ़ते कहर की वजह से सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।
स्वर्गलोक को बचाने के लिए और जालंधर का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई। वे एक ब्राह्मण का भेष धारण करके वृंदा के पास गए। अपने माया जाल से उन्होंने दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़।
अपने पति को इस अवस्था में देखकर वृंदा बेहोश हो गई, थोड़ी देर बाद जब उसे होश आया तो वो ब्राह्मण से उसके पति को जीवित करने की प्रार्थना करने लगी।
ब्राह्मण के भेष में भगवान विष्णु ने वृंदा के साथ छल किया और खुद जालंधर के भेष में उसके पास चले गए।
वृंदा को इस छल का ज़रा भी आभास न हुआ। वह उनके साथ पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। जैसे ही वृंदा की पवित्रता भंग हुई वैसे ही उसका पति जालंधर युद्ध में हार गया और मारा गया ।
वृंदा को जब इस छल के बारे में पता चला तो, उसने भगवान विष्णु को शीला होने का श्राप दिया और खुश अपने पति के साथ सती हो गई। कहते हैं जहां पर वृंदा भस्म हुई, वहां तुलसी का एक पौधा उगा।
वृंदा का पति प्रेम देखकर भगवान विष्णु प्रभावित हुए। उन्होंने वृंदा से कहा, “तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। आज के बाद तुलसी के रूप में तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी। भविष्य में जो मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।’
तभी से हर साल कार्तिक मास की एकादशी को तुलसी विवाह किया जाता है। कहते है कि इस दिन पूजा के समय यह व्रत कथा सुनना बहुत पुण्यदायी माना जाता है।
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Tulsi Mata Ki Vrat Katha (पूजा में सुनाई जाने वाली कहानी)

यह तुलसी माता की एक और कहानी है, जो व्रत के दौरान सुनी जाती है। यह कहानी इस प्रकार है –
एक गांव में बहुत सी औरते रोज तुलसी की पूजा करने मंदिर में जाया करती थीं। इन्हीं में एक बुढ़िया माई भी थी, जो रोज तुलसी को सींचती और कहती – हे तुलसी माता! सत की दाता मैं तेरा बिडला सीचती हूँ,
तू मुझे बहु दे,
पीताम्बर की धोती दे,
मीठा-मीठा गास दे,
बैकुंठा में वास दे,
चटक की चाल दे,
दाल भात का खाना दे,
ग्यारस की मौत दे,
कृष्ण का कन्धा दे ।
बुढ़िया माई की बात सुनकर तुसली सूखने लगी। यह देखकर भगवान ने पूछा, “ तुम सूख क्यों रही हो?”
इस पर तुलसी माता ने जवाब दिया, “ ये माता रोज पूजा करते समय मुझसे बहुत कुछ मांगती हैं, मैं इनकी सभी इच्छाएं पूरी कर सकती हूं, लेकिन मैं लेकिन कृष्ण का कन्धा कहाँ से लाऊँगी। उनकी यह इच्छा पूरा करना मेरे बस की बात नहीं है”।
इस पर भगवान बोले, “ इस बात की चिंता तुम मत करो, तुम उस बुढ़िया माई से कह देना कि जब वो मरेगी तो मैं अपने आप कंधा दे आऊँगा।”
कुछ दिनों के बाद बुढिया माई मर गई। जब लोग उन्हें ले जाने लगे तो वह किसी से भी नहीं उठी। हर कोई यह देखकर बहुत ज्यादा हैरान था। तभी भगवान कृष्ण एक बारह साल के बालक का रूप धारण करके आगे आए और बुढ़िया के कान में बोले, “बुढ़िया माई मन की निकाल ले,
पीताम्बर की धोती ले,
मीठा-मीठा गास ले,
बेकुंठा का वास ले,
चटक की चाल ले,
पटक की मोत ले,
कृष्ण जी का कन्धा ले..”
यह सुनकर बुढ़िया माई हल्की हो गई। तभी भगवान ने बुढ़िया माई की अर्थी को हाथ लगाया तो वह आसानी से उठ गई, और उन्हें शांती मिल गई।
हे तुलसी माता! जैसे बुढ़िया माई को आपने मुक्ति दी वैसे ही आपको पूजने वाले हर व्यक्ति को मुक्ति देना।
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FAQs: Tulsi Mata Ki Kahani को लेकर अक्सर पूछे गए सवाल
Q.1– देवी तुलसी ने विष्णु को श्राप क्यों दिया था?
A. – वृंदा को जब विष्णु के छल के बारे में पता चला तो गुस्से में आकर उन्होंने भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने का श्राप दे दिया।
Q.2 – तुलसी माता की कथा क्या है?
A.– धार्मिक कथाओं के अनुसार जालंधर की पत्नी वृंदा की पवित्रता हमेशा उसे बचा लेती थी, ऐसे में उसे हराने के लिए वृंदा की पवित्रता को भंग करना जरूरी था। ऐसे में एक दिन भगवान विष्णु जालंधर का भेष धारण करके वृंदरके पास पहुंचे। जैसे ही उसकी पवित्रता भंग हुई, जालंधर का आंतों गया। सच्चाई पता चलने के बाद वृंदा सती हो गई और तुलसी के पौधे में परिवर्तित हो गई। उस दिन के बाद ही विष्णु और तुलसी का विवाह एक साथ किया जाने लगा।
Q.3 – तुलसी का असली पति कौन था?
A.– धार्मिक कथाओं में वृंदा के रूप में तुलसी का विवाह दैत्य राजा जालंधर से हुआ था।