यह कहानी है कासगंज के राजा विक्रमादित्य और उनकी तीन रानियों की। राजा अपनी बीमारी के दिनों में तीनों रानियों की परीक्षा लेता है, कौन उससे ज्यादा प्यार करती है। जो रानी राजा को ज्यादा प्यार करती है, अपनी आधी संपत्ति उसके नाम के देता है।
राजा की तीन रानियों में से किसे उसकी संपत्ति मिलती है, और कौन राजा को सबसे ज्यादा प्यार करता है, यह जानने के लिए आपको पढ़नी होगी राजा और रानी की कहानी l, तो चलिए शुरू करते हैं….
यह उस जमाने की बात है, जब देश में राजतंत्र हुआ करता था। कासगंज के राजा विक्रमादित्य के शौर्य की चर्चा दूर – दूर तक थी। उनकी तीन रानियां थी, जिनमें से दो रानियां बहुत ज्यादा ख़ूबसूरत और एक रानी कम सुंदर थी। ऐसे में राजा अपनी दो रानियों से बहुत ज्यादा प्रेम किया करते थे और अपना पूरा समय दोनों के साथ बिताते थे। तीसरी रानी राजा को कम प्रिय थी, तो वे मुश्किल से ही उसके साथ समय बिताते थे।
हालांकि राजा की तीसरी पत्नी उनसे बहुत प्यार करती थी, उसे हमेशा लगता कि राजा एक न एक दिन उसके प्यार को जरूर समझेंगे। इसी उम्मीद से वह सालों तक राजा के प्यार का इंतजार कर रही थी।
राजा ने ली तीनों रानियों की परीक्षा
ऐसे में एक दिन राजा विक्रमादित्य की तबियत खराब हो गई, राजा ने बहुत से वैद्य को दिखाया लेकिन किसी की दवा उनकी बीमारी का इलाज न कर सकी। दिनों दिन राजा की तबियत बिगड़ने लगी और उनके जिंदा रहने की उम्मीद भी कम होने लगी। ऐसे में राजा ने अपनी तीनों रानियों के प्रेम की परीक्षा लेने का सोचा। राजा विक्रमादित्य सोच रहे थे कि, जो रानी उन्हें ज्यादा प्रेम करती है वह उसके नाम अपनी पूरी संपत्ति देंगे।
ऐसे में उन्होंने अपनी पहली रानी को बुलाया और उससे बोले, “ सुनो मेरी तबियत बहुत खराब होती जा रही है, मेरे जिंदा रहने के दिन अब बहुत कम है और मैं अकेले नहीं मरना चाहता हूं, क्या तुम मेरे साथ चलोगी?
यह सुनकर राजा की पहली पत्नी बोली, “मैं क्यों आपके साथ जाऊंगी, आखिर अभी मेरी उम्र ही किया है? मेरे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है, मैं उसे इस तरह बर्बाद नहीं कर सकती।” यह कहकर रानी कमरे से बाहर चली गई। राजा यह सुनकर बहुत उदास हो गया।
इसके बाद राजा ने अपनी दूसरी रानी को अपने पास बुलाया। लेकिन जब उसे पता चला कि राजा मरने वाला है, और वह अपनी प्यारी रानी को अपने साथ ले जाना चाहता है, तो डर के मारे वो उसके कमरे में गई ही नहीं। उसने एक दासी से कहलवाया की, उन्हें इतनी जल्दी नहीं मारना है।
राजा यह सोचकर बहुत दुखी हो गया कि जिन दो रानियों को उसने इतना प्यार किया, आज मुसीबत के समय में उन्होंने उससे मुंह मोड़ लिया। अब बारी तीसरी रानी की थी, लेकिन राजा की हिम्मत ही नहीं हुई कि वह उससे अपने साथ चलने को पूछ ले। क्योंकि राजा अपने अच्छे दिनों में कभी उससे न तो प्यार से बात करना उतना ही उसके पास बैठता।
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तीसरी रानी ने पास की राजा की परीक्षा
ऐसे में तीसरी रानी बिना बुलाए ही राजा के कमरे में आई। उसने राजा विक्रमादित्य से कहा, “हे प्राणनाथ, अगर आप यह दुनिया छोड़कर जाने की सोच रहे हैं तो, आप अकेले नहीं जाएंगे। मैं भी आपके साथ चलूंगी। आपके अलावा इस दुनिया में मेरा है ही कौन? आप यहां नहीं होंगे तो मैं यहां रहकर क्या करूंगी।”
तीसरी रानी की बात सुनकर राजा खुशी के मारे रो पड़े। उन्होंने तीसरी रानी से क्षमा मांगते हुए कहा, “मुझे माफ कर दो, मैने हमेशा तुम्हारे रूप को देखा, पर तुम्हारे मन की सुंदरता को मैं कभी देखा नहीं पाया। आज इस विपत्ति के समय में जब मेरी दोनों सुंदर रानियो ने मेरा साथ छोड़ दिया तो तुम मेरे साथ खड़ी हो। तुम्हारे प्रेम का एहसान मैं जिंदगी भर नहीं चुका पाऊंगा। यह कहकर राजा जोर जोर से रोने लगे।
तीसरी रानी उन्हें चुप ही करवा रही थी, की तभी राजगुरु अपने साथ विदेश के एक प्रसिद्ध वैद्य को लेकर आएं। उसकी दवाइयों से राजा की बीमारी ठीक होने लगी, और देखते ही देखते राजा कुछ ही महीनों में फिर से पहले की तरह जवान और हट्टे कट्टे हो गए।
राजा के ठीक होने की खबर सुनकर उनकी दोनों रानियां उनके पास आई, लेकिन राजा ने अब उन्हें पहले जैसा प्यार नहीं दिया। राजा अब अपना पूरा समय तीसरी रानी के साथ बिताते लगे, और अपनी आधी संपत्ति तीसरी रानी के नाम कर दी। यह रानी के प्यार का उपहार था, लेकिन तीसरी रानी का सबसे कीमती उपहार था, राजा विक्रमादित्य का प्रेम जो काफी सालों से अधूरा था। अब राजा और रानी अपने महल में खुशी खुशी रहने लगे।
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