सोमनाथ एक संपन्न और ब्राह्मण परिवार का लड़का था, उसके पिता अयोध्या के बड़े राम मंदिर में मुख्य पंडित थे। वे हमेशा पूजा पाठ और प्रवचनों से लोगों को नैतिकता सिखाते, पर ऊंच–नीच, जात–पात जैसी बातों में वो विश्वास करते थे। उनके मंदिर में निम्न जाती के लोगों को जाने की अनुमति नहीं थी। रामनवमी के दिन बस बाहर से ही सामान्य लोग भगवान के दर्शन कर सकते थे। लेकिन सोमनाथ अपने पिता से बिल्कुल अलग था।
वह एक पढ़ा-लिखा, सभ्य और खुले विचारों वाला युवक था। समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ वो हमेशा आवाज उठाता था। वह चाहता था कि सब लोग बराबर हों, बिना जाति-पाति के भेदभाव के रहें। एक बार रामनवमी पर जब निम्न जाती के लोगों को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी गई, तो वह मंदिर से मूर्ति लेकर लोगों को उनके दर्शन करवाने पहुंच गया। उसका कहना था, “भगवान किसी एक जाति या इंसान के नहीं हैं, उनपर हर किसी का बराबर अधिकार है”।
रामनवमी के मेले में सोमनाथ की नजर एक साधारण सी लड़की पर पड़ी, जिसकी सादगी ने उसका दिल जीत लिया। उस लड़की का नाम था मंजरी, जो निम्न जाति से थी। वह अपने बाबा के साथ मेले में आई थी जो वहां पर माला बेचा करते थे। पहली नजर में सोमनाथ उसे अपना दिल दे बैठा। धीरे धीरे दोनों की मुलाकातें बढ़ी और दोनों के बीच प्यार पनपने लगा। सोमनाथ के लिए कजरी की जाति कोई मायने नहीं रखती थी।
सोमनाथ और मंजरी के प्यार को लगी बुरी नजर
मगर किस्मत ने उनकी खुशियों पर ग्रहण लगा दिया। मंजरी जब अयोध्या के मेले से अपने पिता के साथ वापस अपने गांव जा रहा था, तो रास्ते में एक दबंग व्यक्ति ने उसके साथ पिता के साथ बतमीजी की। शराब के नशे में चूर उस दरिंदे ने मंजरी की भी इज्जत लूट ली। वह चीखती रही चिल्लाती रही पर किसी ने उसकी पुकार नहीं सुनी।
मंजरी की मां को जब इस बात के बारे में पता चला तो समाज में बदनामी के डर से उसने खुदकुशी कर ली। इस घटना के बाद समाज ने उसके चरित्र पर उंगली उठाई और उसे तिरस्कृत किया। किस्मत की इस मार से मंजरी पूरी तरह से टूट चुकी थी। अपमान और दर्द के भार तले दबकर वह कहीं दूर चली गई। दूसरी तरफ सोमनाथ को इस बारे में कुछ नहीं पता था। उसने मंजरी को बहुत ढूंढा पर वो कहीं नहीं मिली।
दो सालों के बाद जब एक दिन सोमनाथ अपनी चाची के गांव गया, जहां उसका सामना मंजरी से हुआ। एक हंसती खिलखिलाती लड़की अब मुरझा गई थी। मंजरी की यह हालत देखकर सोमनाथ की आंखों में आंसू आ गए। उसने मंजरी से अपने प्यार का इज़हार फिर से किया। लेकिन मंजरी को डर था — अगर सोमनाथ को उसके अतीत का सच पता चल जाएगा, तो वह उसे नहीं अपनाएगा?
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क्या होगा, जब सोमनाथ को मंजरी का अतीत पता चलेगा?
मंजरी ने जब सोमनाथ को अपना अतीत बताया तो वो सकपका गया, पर फिर भी उसने मंजरी से शादी करने का फैसला लिया। उसका कहना था, की उसकी आत्मा तो पवित्र है। सोमनाथ अपने परिवार को मानने में लग गया। इसी बीच कजरी को अपना दोषी दिखाई दिया, जिसने दो साल पहले उसकी इज्जत लूटी थी।
उस दरिंदे का नाम रूप सहाय था, उसे देखकर मंजरी को अपने साथ हुए अत्याचार की याद आने लगी। उसने ठान लिया कि वह उसे उसके कर्मों की सजा देकर ही रहेगी। सोमनाथ ने कानूनी तरीका अपनाया पर, पॉलिटिकल सपोर्ट की वजह से वह बच निकला। ऐसे में दशहरे के दिन, जब पूरे गाँव में रावण दहन हो रहा था, उसी समय सोमनाथ और मंजरी ने उन्हें पापों की आग में झोंक दिया।
जैसे रावण का पुतला जलकर राख हो जाता है, वैसे ही उन पापियों का अंत हो गया।
अंत में मंजरी को न्याय मिला और वह फिर से सिर उठाकर जीने लगी। सोमनाथ ने भी जात–पात से ऊपर उठकर उससे शादी कर ली और खुशी खुशी अपना जीवन बिताने लगे।
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