पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की कहानी

पूस महीने की उस कड़कड़ाती ठंड में हल्कू उस रात का अकेला पहरेदार था, जो खेत की रखवाली करने निकला था। कोहरे ने चारों और से खेतों को ढका हुआ था, हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में दूर कहीं कुत्ते भौंक रहे थे। पर क्या उस रात सिर्फ ठंड ही उसकी असली दुश्मन थी? या कुछ और भी था जो उसकी हिम्मत को खत्म कर रहा था? 

उस रात की पूरी सच्चाई जानने के लिए पढ़े हमारे ब्लॉग की आज की कहानी “पूस की रात”। यह मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी एक बहुत फेमस कहानी है, जो एक किसान की व्यथा और परेशानी को शब्दों में पिरोने का काम करती है। यह उस भारतीय किसान की जीवंत तस्वीर है जो कर्ज, मजबूरी और शोषण के बीच पिसता रहता है। 

पूस की रात कहानी के पात्र :–

  • हल्कू – कहानी का नायक 
  • मुन्नी – कहानी की नायिका और हल्कू की पत्नी 
  • जबरा – वफादार कुत्ता जो हल्कू के साथ खेतों की रखवाली करने जाता है। 

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पूस की रात कहानी का सारांश 

प्रेमचंद की इस कहानी का नायक है “हल्कू”, जिसका जीवन गरीबी और कर्जे से घिरा हुआ है। हल्कू की एक पत्नी भी है, जिसका नाम है मुन्नी। वह अपने पति को हमेशा खेती छोड़कर मेहनत मजदूरी करने की सलाह देती है। उसे पता है, की खेती से जो उपज होती है वो या तो कर्जे में चली जाती है या साहूकारों के पास गिरवी रख दी जाती है। 

पूरे साल भर मेहनत करके मुन्नी ने तीन रुपए इकट्ठा किए ताकि पूस की सर्दी में खेतों की रखवाली करने के लिए उसका पति एक कंबल खरीद सके। पर कर्ज की मार उनपर ऐसी पड़ती है कि वो पैसे भी कर्जदार को उधार चुकाने में ही चले जाते हैं। 

मुन्नी हल्कू से खूब बहस करती है, कहती है कि, “ पूरा साल खेतों में मेहनत करके भी अगर हम अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पा रहे है, तो क्या फायदा? इससे अच्छा तो मेहनत मजदूरी कर लें ताकि हम चैन की रोटी खा पाएं”। शुरू में तो वह पैसा देने से मना करती है, लेकिन जब कर्जदार घर पर ही जाकर खड़ा होता है, और हल्कू को सुनाता है तो हल्कू वो पैसे निकालकर कर्जदार को। दे देता है। 

 कंबल के पैसे तो कर्जदार के पास चले गए। लेकिन खेतों की रखवाली तो करनी ही थी। पूरक महीना था, सर्दी की ठिठुरती रात में हल्कू अपने खेतों में जाता है। उसके साथ उसका पालतू कुत्ता जबरा भी उसके साथ था। हल्कू ने एक फटी पुरानी हल्की सी चादर ओढ़ रखी थी। सर्दी से छुटकारा पाने के लिए उसने अपने कंधे घुटनों में दबाए हुए थे, पर रात की सर्द हवा उसके शरीर को कंपा रही थी। 

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जैसे तैसे एक घंटा बीता और हल्कू की सर्दी से बुरी हालत हो गई। उसके खेतों के पास ही आम का एक बाग था। सर्दी से परेशान होकर खेत के किनारे आम के बाग में चला गया, जहाँ ज़मीन थोड़ी गर्म रहती है। वहाँ जाकर उसने पत्तों का ढेर बनाया और उसमें आग लगा दी। पत्तों की आग से मिलने वाली गर्माहट ने हल्कू को काफी राहत दी, लेकिन यह गर्माहट बस कुछ देर की ही थी। 

सर्द हवा का कहर बढ़ रहा था। अब हल्कू की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं हुई कि वह वहां से उठ जाए। पत्तों की गर्म राख के पास ही वह अपनी पतली सी चादर ओढ़ कर लेट गया। जबरा भी उसके पास ही सो गया। थोड़ी ही देर में हल्कू का शरीर गर्म हो गया और वह गहरी नींद में चला गया। 

कुछ घंटे बीते ही थे कि हल्कू के खेतों में कुछ जंगली जानवर घुस आए। जबरा जोर से भौंकते हुए उसके खेतों की ओर भागा। लेकिन अब आलस्य हल्कू को घेर चुका था। उसे अहसास हो गया था कि खेत में नील गायों का झुंड घुस गया है, जो उसकी फसल खा रहा है। लेकिन उसे अपनी जगह से हिलना जहर लग रहा था।  इस जाड़े-पाले में खेत में जाना, जानवरों के पीछे दौड़ना असह्य जान पड़ा। वह अपनी जगह से न हिला और चादर ओढ़कर वहीं सो गया। 

अगली सुबह जब उसकी नींद खुली, तब चारों तरफ़ धूप फैल गई थी और उसकी पत्नी मुन्नी वहीं पर थी, जो उससे कह रही थी— “क्या सोते ही रहोगे? तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेत चौपट हो गया। क्या यह रखवाली करने आए थे तुम खेतों में। अब हमारा क्या होगा?”

हल्कू ने मुन्नी सेपूछा— “क्या तू खेत से होकर आ रही है?”। मुन्नी बोली— “हाँ, सारे खेत का सत्यानाश हो गया है।” दोनों अब अपने खेत की दशा देख रहे थे। मुन्नी के मुख पर उदासी छायी थी वह सोच रही थी कि “अब मेहनत मजदूरी करके पेट पालना होगा”। वहीं हल्कू खुश था, क्योंकि अब रात को। उसे ठंड में नहीं सोना होगा। 

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FAQs: पूस की रात कहानी से जुड़े जरूरी सवाल –

Q.1– पूस की रात कहानी के लेखक कौन है?

ANS – पूस की रात कहानी मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई एक कहानी है। 

Q.2 – पूस की रात कहानी का क्या संदेश है?

Ans – यह कहानी उस भारतीय किसान की जीवंत तस्वीर है जो कर्ज, मजबूरी और शोषण के बीच पिसता रहता है। 

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