कहानियों के सफर में आज हम आपको सुनाएंगे हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध लेखक और कहानीकार मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ । ये कहानियां आपके स्कूल और कॉलेज के दिनों को फिर से ताज़ा कर देंगी । इन कहानियों में आपको निस्वार्थ प्रेम, ईमानदारी, गरीबी और मानवता का भाव देखने को मिलेगा।
प्रेमचंद की कहानियाँ पढ़ने से पहले चलिए एक नजर उनके जीवन परिचय पर डालते हैं। –
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय: Premchand Ka Jeevan Parichay
मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महान उपन्यासकार और विचारक थे। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। अपने करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने
शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर काम किया, लेकिन 1921 में, उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी और लेखन को अपना व्यवसाय बनाया।
अपने जीवनकाल में उन्होंने बहुत से प्रसिद्ध उपन्यास और कहानियां लिखी। जैसे – गबन, निर्मला, गोदान, ईदगाह, पूस की रात, कफ़न, बड़े घर की बेटी आदि।
मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ: Munshi Prem Chand Ki Kahaniya
चलिए अब बात करते हैं, मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियों की, जो आपने अपने स्कूल, कॉलेज की किताबों में जरूर पढ़ी होंगी।
1. ईदगाह
ईदगाह मुंशी Premchand Ki Kahani है जो उर्दू में लिखी गई है। यह कहानी हामिद और उसकी दादी के बीच प्यार, त्याग और मानवता को प्रदर्शित करती है।
चार साल का हामिद अपनी दादी अमीना के साथ रहता था। बचपन में ही उसके माता पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद अमीना ने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया था। रमजान के पूरे तीस दिन के बाद ईद आई। हामिद ईद के मेले में जाने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक था। सुबह सुबह ही सफेद कुर्ता पजामा पहन कर वह अपनी दादी अमीना के पास गया, और मेले में जाने की इजाजत मांगी
अमीना ने बहुत मुश्किल से तीन पैसे इक्कठा किए थे। वे पैसे उसने हामिद को दे दिए और अपने जानकारों के साथ उसे मेले में भेज दिया। अमीना ने कहा, “बेटा समय से वापस आ जाना, मैं तुम्हारे लिए सेवइयां बनाकर तैयार रखूंगी।”
हामिद मेले में पहुंचा। उसकी उम्र के सभी बच्चे झूला झूलने और तरह तरह की मिठाइयां खाने में व्यस्त थे, तभी उसकी नजर एक दुकान पर पड़ी। वह दुकान पर गया और दुकानदार से बोला, “यह चिमटा कितने का दिया है?”
हामिद के साथ किसी बड़े को न देखकर दुकानदार बोला, “बेटा यह तुम्हारे काम का नहीं है, खिलौनों की दुकान आगे है”।
हामिद ने जवाब दिया, “मुझे यही चाहिए, यह बिकाऊ है या नहीं?”
दुकानदार बोला, “ छ पैसे लगेंगे”
हामिद, “ ठीक ठीक लगाओ”।
दुकानदार, “ पांच पैसे दे देना”।
हामिद बोला, “ मेरे पास तीन पैसे है”। काफी देर मोल भाव करने के बाद दुकानदार तीन पैसे में चिमटा देने के लिए मान गया। चिमटा पाकर हामिद इतना ज्यादा खुश था, जैसे उसे पंख लग गए हों।
मेले से वापस आते–आते रात के 11 बज गए। अमीना अपने पोते का इंतजार कर रही थी, की तभी उसने देखा गांव के सभी बच्चे हाथों में खिलौने लेकर आ रहे हैं। तभी उसने देखा, हामिद हाथ में चिमटा लिए खुशी–खुशी उसकी ओर चला आ रहा है।
हामिद के हाथ में चिमटा देखकर दादी ने उससे पूछा, “चिमटा कहाँ से आया?”
हामिद ने बताया,” अम्मा तीन पैसे देकर लाया हूं, वह तो छ पैसे मांग रहा था बहुत मुश्किल से मनाया।”यह सुनकर दादी को गुस्सा आ गया और वह हामिद को डांटते हुए बोली, “ मैने तुम्हे पैसे मेले में जाकर कुछ खाने-पीने के लिए दिए थे, लेकिन तुम यह चिमटा उठा लाए”।
हामिद ने आंखों में आंसू लाकर कहा, “ रोज रोटियां बनाते समय तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए में तुम्हारे लिए चिमटा लाया हूँ।” अपने पोते की चिंता देखकर अमीना भावुक हो गई, और रोते हुए उसे दुआएं देने लगी।
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2. दो बैलों की कथा
झुरी नाम का एक किसान था जिसके पास दो सुंदर और हट्टे-कट्टे बैल थे,जिनका नाम था हीरा और मोती। दोनों बैल बहुत अच्छे दोस्त थे। वे हमेशा एक ही नाद से खाना खाते और एक दूसरे को चाटकर अपनी दोस्ती का प्रदर्शन करते। झुरी भी अपने बैलों से बहुत ज्यादा प्रेम करता था, वह कभी उनसे जरूरत से ज्यादा काम नहीं करवाता ।
लेकिन झुरी की पत्नी को दोनों बैल फूटी आंख न सुहाते थे। उसे लगता था कि दोनों बैल बहुत ही कामचोर है, इसलिए कभी कभी वह उन्हें बिना चोकर का भूसा दिया करती थी। एक दिन किसी मजबूरी के चलते झुरी को अपने बैल अपने साले गया को देने पड़े। जब गया उन्हें ले जा रहा था, तो दोनों बैल बहुत ज्यादा दुखी थे। उन्हें लग रहा था कि झुरी ने उन्हें बेच दिया है ।
गया के गांव पहुंचकर दोनों बैलों ने खाना नहीं खाया और रात में खूंटा तोड़कर वापस झुरी के घर लौट आए। अपने बैलों को देखकर झुरी बहुत खुश हुआ, पर उसकी पत्नी अब भी नाराज़ थी।
अगले दिन गया फिर से आया और बैलों को जबरन वापस ले गया। इस बार गया ने बैलों से खूब काम करवाया । वह उन्हें ठीक से खाना भी नहीं देता । गया के घर में एक छोटी बच्ची भी रहती थी, जो दोनों बैलों को रात में छुपकर एक एक रोटी खिला देती थी। बच्ची का स्नेह दोनों बैलों के दुख को भूला देता था।
एक रात वह बच्ची उनकी हालत देख न सकी और दोनों बैलों की रस्सी खोल दी। मौका पाते ही हीरा और मोती वहां से भाग निकले। रास्ते में दोनों बैलों का मुकाबला एक मोटे ताजे सांड से हुआ, लेकिन दोनों ने मिलकर उसे खूब मजा चखाया।
यहां से निकलकर दोनों बैल कांजीहौस पहुंचे, जहां उन्हें बंद कर दिया गया। कांजीहौस में दोनों बैलों पर खूब अत्याचार किया गया। एक दिन जब मोती से अत्याचार नहीं झेला गया तो उसने दीवार तोड़ दी और वहां मौजूद सभी जानवरों को रिहा कर दिया। लेकिन दोनों फिर पकड़े से गए और कसाई को बेच दिए गए।
कसाई जब उन्हें ले जा रहा था , तो उन्हें रास्ता जाना पहचाना लगाए। कसाई के चंगुल से भागकर वह सीधे झुरी के घर जा पहुंचे। अपने बैलों को फिर से घर पर देखकर झुरी भावुक हो गया। झुरी की पत्नी ने भी बैलों की वफादारी को पहचान लिया और दोनों बैलों का माथा चूमकर उन्हें हमेशा–हमेशा के लिए उन्हें अपना लिया।
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3. नमक का दरोगा
यह मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी है जिसमें ईमानदारी, भ्रष्टाचार और आत्मसम्मान की एक अनोखी लड़ाई दिखाई गई है।
मुंशी वंशीधर एक गरीब ब्राह्मण परिवार का लड़का है, जिसे नमक विभाग मे दारोगा के पद पर नौकरी मिलती है। नौकरी में आने के बाद वंशीधर देखता है, की यह विभाग भ्रष्ट लोगों से भरा हुआ है। उसे भी यहां ऊपर की कमाई करने के बहुत सारे मौके मिलते हैं। उसके पिता चाहते हैं कि वह इस नौकरी से धन कमाकर घर की स्थिति सुधारे, भले ही इसके लिए रिश्वत लेनी पड़े। लेकिन वह अपनी ईमानदारी पर डटा रहता है।
एक दिन वंशीधर को नमक की बहुत बड़ी तस्करी के बारे मे पता चलता है। वह तुरंत वहां पहुंचता है, जहां उन्हें पता चलता है कि इस तस्करी के पीछे गांव के बड़े व्यापारी पंडित आलोपीदीन का हाथ है।
वंशीधर पंडित आलोपीदीन को बुलावा भेजता है। मामले को रफा दफा करने के लिए आलोपीदीन मुंशी बंशीधर को हजार रुपए रिश्वत पेश करते हैं। लेकिन वंशीधर नहीं मानता और पंडित आलोपीदीन को गिरफ्तार करने के हुक्म दे देता है।
धीरे धीरे रिश्वत की कीमत बढ़ती जाती है और यह कीमत चालीस हजार रुपए तक पहुँच जाती है। इतने पैसों से भी मुंशी वंशीधर का ईमान नहीं डोला और उसने पंडित आलोपीदीन को गिरफ्तार कर लिया। मामला अदालत में पहुँचता है, लेकिन पंडित जी के प्रभाव के कारण वंशीधर की नौकरी चली जाती है।
नौकरी जाने के बाद मुंशी बंशीधर की मुसीबतें और बढ़ जाती हैं, पैसे की तंगी के कारण उसे उसके घर वालों के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन मुंशी वंशीधर की ईमानदारी से प्रभावित होकर पंडित आलोपीदीन उनके सामने एक अच्छे वेतन मान वाली नौकरी का प्रस्ताव रखते हैं। वह मुंशी वंशीधर को अपने पूरे व्यवसाय और संपत्ति की देखरेख के लिए प्रबन्धक पद पर नियुक्त कर देते है। वंशीधर को उसकी ईमानदारी का ईमान मिलता है ।
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4. पूस की रात
यह एक गरीब किसान की कहानी है जिसका नाम है हल्कू । वह अपनी पत्नी मुन्नी के साथ गांव में रहता है। हल्कू की माली हालत खराब होती है, जिस वजह से अपने खेतों को बचाने के लिए वह कर्ज लेता है। अपनी फसल का अधिकांश हिस्सा वो कर्ज चुकाने में दे देता है।
देखते देखते पूस का महीना आ जाता है ।सर्दियों में कंबल खरीदने के लिए हल्कू ने मजूरी करके बड़ी मुश्किल से तीन रुपये इकट्ठे किये हैं। लेकिन वह तीन रुपये भी महाजन ले जाता है। उसकी पत्नी मुन्नी इसका बहुत विरोध करती है, लेकिन हल्कुइवो पैसे महाजन को दे देता है।
सर्दी की रात में एक दिन हल्कू अपनी फसल की देखभाल के लिए खेत पर जाता है। उसके साथ उसका पालतू कुत्ता जबरा भी जाता है। पौष का महीना था, ठंडी हवा को रही थी। हल्कू के पास ओढ़ने के लिए चादर के अलावा कुछ भी नहीं था, कंबल के पैसे तो उसने महाजन को दे दिए थे।
ऐसे में सर्दी से बचने के लिए हल्कू ने बगीचे से पत्ते इकट्ठा किए और अलाव जलाया। थोड़ी देर उसे राहत मिली, आग बुझ जाने पर भी शरीर की गरमाहट से वह चादर ओढ़े बैठा रहा है।
तभी उसके खेत में नील गाय घुस गई। उसका कुत्ता जबरा भौंका लेकिन उसने उसे नजरअंदाज किया। एक बार को हल्कू ने कोशिश भी की, लेकिन तभी एक ठंडी हवा का झोंका आया और वो ठिठुर गया। सर्दी के मारे वो चद्दर ओढ़कर सो गया। अगली सुबह उसकी पत्नी ने बताया की, गायों ने सारी फसल नष्ट कर दी है। यह सुनकर हल्कू खुश था, क्योंकि अब उसे रात में खेतों की रखवाली नहीं करनी होगी। अब वह मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालेगा।
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5. कफ़न
‘कफ़न’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक प्रसिद्ध हिंदी कहानी है, जो समाज की कठोर सच्चाई, गरीबी, और मानवीय संवेदनाओं के पतन को उजागर करती है।
यह कहानी घीसू और उसके बेटे माधव की है, जो गरीब और आलसी किसान हैं। मेहनत करने के बजाय वे दूसरों के सहारे पर जीवन जीते हैं। पूरा समय वो लोगों से मांग मांग कर ही खाते हैं।
एक दिन माधव की पत्नी बुधिया को प्रसव पीड़ा होती है। वह अंदर झोपड़ी में दर्द से कराह रही थी, लेकिन घीसू और माधव बाहर आग तापते हैं और खाना खाते हुए उसके मरने की दुआ करते हैं। दोनों में से कोई भी झोपड़ी में नहीं जाता है, और न ही दाई को बुलाकर लाता है। अंत में पूरी रात तड़पने के बाद बुधिया की मृत्यु हो जाती हैं।
बुधिया को मौत को घीसू और माधव किसी अवसर की तरह देखते है, जहां वो लोगों से पैसे मांग सके। दोनों रोने का नाटक करते है, जिनपर दया करके गांव के लोग उन्हें कफ़न लाने को पैसा देते हैं।
लेकिन घीसू और माधव उन पैसों से कफ़न खरीदने के बजाय उन्हें शराब और खाने में उड़ा देते हैं। शराब खाने में शराब पीते हुए वो अपने अनुभवों को लेकर बाते करते है, और तर्क देते है, कि गरीबों के मरने पर भी रीतियों का बोझ क्यों हो, और बुधिया जैसे स्त्री को अच्छा कफ़न मिलना असंभव ही था। अंत में बुधिया का अंतिम संस्कार बिना कफ़न के ही होता है।
निष्कर्ष :
इस आर्टिकल में Munshi Premchand Ki Kahaniyan संक्षिप्त में बताई गई हैं। उम्मीद है ये कहानियां आपको पसंद आई होगी। कहानियां अच्छी लगी हो तो इन्हें शेयर करे, साथ ही आपको कौनसी premchand ki kahani ज्यादा पसंद आई कमेंट करके जरूर बताएं।
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