हर व्रत की अपनी अगल कहानी होती है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी व्रत कथा सुनाएंगे जिसे आप किसी भी व्रत में सुन सकते हैं। इस कहानी का नाम है, लपसी तपसी की कहानी। चलिए शुरू करते हैं….
पुराने समय की बात है एक छोटे से गांव में लपसी और तपसी नाम के दो भाई रहते थे। तपसी हमेशा भगवान की पूजा करता रहता, वहीं लपसी रोज सवा शेर की लपसी बनाकर भगवान को चढ़ता।
एक दिन दोनों भाइयों में बहस हुई, की दोनों में से कौन बड़ा है। तपसी बोलता, “ मैं रोज घंटों भगवान की पूजा करता हूं, इसलिए मैं बड़ा हूँ।” वहीं लपसी कहता, “ मैं भी रोज भगवान को सवा शेर लापसी का भोग लगाता हूँ, तो इसलिए मैं तुझसे बड़ा हूं”। छोटी सी बहस अब लड़ाई बन गई। दोनों इस बात को लेकर जोर जोर से लड़ने लगे।
उसी समय नारद जी भी वहां से गुजर रहे थे। दोनों को इस तरह लड़ता देख उन्होंने पूछा, “तुम दोनों किस बात को लेकर इतना बहस कर रहे हो?”
नारद जी की बात सुनकर तपसी ने बताया कि, हम जानना चाहते हैं कि हम दोनों में से बड़ा कौन है? इसी के साथ दोनों ने अपने अपने बड़े होने का कारण भी बताया। यह सुनकर नारद जी बोले, “ बस इतनी सी बात, मैं बहुत ही आसानी से बता सकता हूं कि तुम दोनों में से कौन बड़ा है।”
यह सुनकर दोनों भाई खुश हो गए और बोले, “अच्छा बताओ, की हम दोनों में से बड़ा कौन है?”।
नारद जी बोले, “मैं यह कल बताऊंगा”।
अगले दिन लपसी और तपसी दोनों नहा धोकर अपने अपने काम में लग गए। नारद जी चुप चाप उनके घर आए और दोनों के बैठने के स्थान पर सवा करोड़ की अंगूठी रख दी।
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तपसी की नजर जब अंगूठी पर पड़ी तो, उनसे उसे अपने पैर के नीचे छुपा लिया। वहीं अंगूठी पर नजर पड़ते ही, लपसी चिंता में आ गया, और उसके मालिक को ढूंढने लगा। काफी देर ढूंढने के बाद जब, लपसी को अंगूठी का मालिक नहीं मिला, तो वह अंगूठी उसने गांव के मुखिया को दे दी, और बोला, “मुखिया जी, यह अंगूठी बहुत ही कीमती लग रही है, इसका मालिक प्रशांतो।था होगा। अगर कोई आपके पास अंगूठी खोने की अर्जी लेकर आता है, तो यह अंगूठी उसे दे देना।”
मुखिया के पास जाने के बाद लपसी उस जगह पर जाता है जहां पर तपसी अपनी तपस्या कर रहा होता है। उस समय नारद जी भी प्रकट होते हैं। तभी दोनों उनसे पूछते हैं, “ हम दोनों में से कौन बड़ा है”।
नारद जी कहते हैं, “तुम दोनों में लपसी बड़ा है।” यह सुनकर तपसी चिढ़ गया और इसका कारण पूछा, तो नारद जी ने कहा, “तपसी जरा खड़े होना”। तपसी जैसे ही खड़ा होता है, तो उसके पैर के नीचे छुपी अंगूठी सबको दिख जाती है और उसकी चोरी पकड़ी जाती है।
यह देखकर नारद जी बोले, “तुम भले ही घंटों भगवान की पूजा करते हो, लेकिन तुम्हारे मन में खोट है और इसलिए तुम्हें कोई फल नहीं मिलता है। सिर्फ पूरा दिन पूजा करने से कुछ नहीं होता, व्यक्ति का मन भी अच्छा होना चाहिए।”
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यह सुनकर तपसी शर्मिंदा हो गया और नारद जी के सामने हाथ जोड़कर बोला, “ मुझे अपने किए का पछतावा है, अब आप ही बताए कि मुझे अपनी तपस्या का फल कैसे मिलेगा और मेरा पाप कैसे उतरेगा?”
तभी नारद जी बोले, “ कार्तिक के महीने में जब स्त्रियां कार्तिक नहाएगी, अगर वो तुम्हे अपना पुण्य देंगी तो तुम्हारा पाप उतर जाएगा।”
तभी तपसी बोला, “लेकिन कोई स्त्री मुझे अपना पुण्य क्यों देंगी।” तब नारद जी बोले, अगर कोई धोती के साथ गमछा नहीं देगा, तो वह फल तुम्हें मिलेगा। यदि कोई साड़ी देकर ब्लाउज नहीं देगा, तो वह फल तुम्हें मिलेगा। अगर कोई गाय और कुत्ते की रोटी नहीं बनाएगा, तो फल तुम्हें मिलेगा।
इसी के साथ कोई अंगना लिप कर देहली नहीं लिपेगा, तो वह फल भी तुम्हें मिलेगा। कोई सीधा देखकर दक्षिणा नहीं देगा तो वह फल तुम्हें मिलेगा। कोई ब्राह्मण जिमाकर दक्षिणा नहीं देगा तो वह फल तुम्हें मिलेगा।
और अगर कोई सारी कहानियां सुने लेकिन तुम्हारी कहानी नहीं सुने तो वह फल तुम्हें मिलेगा।
कहते हैं कि उसी दिन से हर व्रत में कथा के बाद तपसी और लपसी की कहानी कही और सुनी जाती है। यह कहानी सिखाती है, की सिर्फ भगवान की पूजा करने से कुछ नहीं होता। इंसान के कर्म और विचार भी अच्छे होने चाहिए।
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