ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी

ईदगाह दादी पोते के प्यार की एक अनोखी प्रेम कहानी है, जो हिंदी कवि मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई है। यह कहानी दिखाती है कि एक छोटा बच्चा कैसे अपने सुख की परवाह न करके अपनी दादी की तकलीफ दूर करने की सोच रखता है।

ईदगाह (मुंशी प्रेमचंद की कहानी)

एक छोटी सी झोपड़ी में चार साल का हामिद अपनी दादी अमीना के साथ रहता था। उसके माता पिता की मृत्यु हो गई थी, ऐसे में उसकी दादी ही सबकुछ थी। अमीना अपने पोते हामिद से बहुत ज्यादा प्यार करती थी। बुढ़ापे में उसकी कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, ऐसे में दोनों काफी गरीबी में जी रहे थे। 

रमजान के 30 दिन बाद जब ईद आई, तो पूरे गांव में खुशियां छा गई। गांव के सभी बच्चे जैसे महमूद, मोहसिन, नूर ईदगाह जाने को बेताब थे। हामिद भी उनके साथ वहां जाना चाहता था, लेकिन उसकी दादी को उसकी बहुत चिंता हो रही थी। 

अकेले मेले में घूमने गया छोटा हामिद 

“3 कोस का रास्ता अकेला बच्चा कैसे तय करेगा, बाकी बच्चों के साथ तो उनके माता पिता है, लेकिन मेरा हामिद अकेला है। मैं भी उसके साथ नहीं जा सकती, मैं गई तो यहां सेवइयां कौन बनाएगा। उसका सामान भी लाना है”, अमीना यह सब सोच ही रही थी कि तभी हामिद वहां आया और बोला, “अम्मा तुम मेरी चिंता मत करना मैं जल्दी ही वापस लौट आऊंगा।” 

पोते की बात सुनकर अमीना को शांती मिली। उसके पास हामिद को ईदी के तौर पर देने के लिए बस 3 पैसे ही थे। वह सारे पैसे उसके हामिद को थमा दिए और बोली, ”मेले में कुछ बढ़िया सा खा लेना, और अपने लिए कुछ अच्छा सा खरीद लेना।”

सुबह सुबह ईदगाह जाने वालो का हुजूम जुड़ गया, तो हामिद भी अपने दोस्तों के साथ चल पड़ा। वह अपनी दादी के दिए हुए पैसों को कसकर अपनी मुठ्ठी में दबाए चला जा रहा था। रास्ते में उसके दोस्त बातें कर रहे थे कि वो मेले से क्या-क्या खरीदेंगे — कोई खिलौने लेगा, कोई मिठाई, कोई बर्तन। और हामिद चुपचाप सुन रहा था।

मिठाइयां और खिलौने छोड़ लोहार की दुकान पर गढ़ाई नजर 

ईदगाह पहुंचने के बाद सभी ने ईद की नमाज अदा की। नमाज के बाद बच्चे मेले में पहुँच गए, जहां झूले, मिठाई और खिलौनों की दुकानें देखकर सब बहुत ज्यादा खुश हुए। हामिद के साथ आए बच्चों में से किसी ने मिट्टी का शेर खरीदा, किसी ने सिपाही तो किसी ने बंदूक। लेकिन हामिद की निगाह एक लोहे का सामान बेचने वाली दुकान पर पड़ी। वहां चिमटे बिक रहे थे। 

हामिद ने दुकानदार से चिमटे की कीमत पूछी। दुकानदार बच्चे को देखकर बोला, “यह तुम्हारे काम का नहीं हैं?”

तभी हामिद बोला, “मुझे खरीदना है, तुम इसकी कीमत बताओ”। दुकानदार ने 6 पैसे बताए। यह सुनकर हामिद थोड़ा सोच में पड़ गया क्योंकि उसके पास तो सिर्फ तीन पैसे थे। उसने दुकानदार से फिर कहा, “ठीक ठीक पैसे लगाओ, यह इतना महंगा भी नहीं है”। 

दुकानदार बोला, “ठीक है, तुम 5 पैसे दे देना, लेकिन हां इससे कम नहीं होगा।”

हामिद ने बड़ी हिम्मत से कहा, “तीन पैसे दूंगा”। थोड़ी देर सोच विचार करने के बाद दुकानदार ने वह चिमटा उसे दे दिया। चिमटा पाकर वह बहुत ज्यादा खुश था। 

थोड़ी देर में उसके सभी दोस्त उसके पास आ गए। उनके पास मिठाइयां और तरह तरह के खिलौने थे। इन सब के बीच हामिद अपने कंधे पर चिमटे को किसी बंदूक की तरह रखे हुए चल रहा था। बाकी बच्चों ने उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया। एक बच्चा बोला, “ये कोई खिलौना है? तुम इस से क्या खेलोगे? लोहे का चिमटा, इससे तो मार पड़ेगी!”

हामिद ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “ये मेरा बहादुर चिमटा है। जो सबके सिपाहियों को मार गिराएगा और शेर की आंखे नोच लेगा। और इसकी एक खास बात भी है, की यह कभी खराब भी नहीं होगा।” यह कहकर हामिद बहुत खुश होकर घर की ओर निकल पड़ा। 

ईदगाह जाने वाले लोगों का हुजूम अब गांव पहुंच गया था। अमीना अपने पोते हामिद का इंतजार कर रही थी की तभी उसने देखा,  हामिद बड़ा की खुश होकर उसकी तरफ चला आ रहा है। उसके हाथ में एक चिमटा भी है। जिसे देखकर दादी ने पूछा, “यह चिमटा किसका है?”

पोते का प्यार देख दादी की आंख में आए आंसू 

हामिद बोला, “अपना ही है दादी, पूरे तीन पैसे में खरीदा है।” यह सुनकर दादी बोली, “अरे बेटा तीन पैसे ही तो दिए थे मैने तुझे, उसका भी तू ये चिमटा ले आया। न तूने सुबह से कुछ खाया न पिया। अब इस चिमटे का तू क्या करेगा।” 

तभी हामिद रोते हुए बोला, “दादी तुम रोज सिगड़ी पर रोटी बनाती हो, जिससे तुम्हारे हाथ जल जाते है, लेकिन अब तुम जब इस चिमटे का इस्तेमाल करोगे तो तुम्हारे हाथ नहीं जलेंगे।” 

एक छोटे से बच्चे की। इतनी समझदारी भरी बातें सुनकर अमीना की आँखों में आँसू आ गए। उसने हामिद को गले से लगा लिया और बोली, “तुझे मेरी इतनी चिंता है, कि पूरे मेले में तूने कुछ भी नहीं खाया। और अपनी बूढ़ी दादी के लिए यह चिमटा ले आया। अल्लाह तुझे खुश रखे।”

FAQs: ईदगाह कहानी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न

Q.1–प्रेमचंद द्वारा लिखित ईदगाह कहानी का प्रकाशन कब हुआ था?

Ans : ईदगाह कहानी को प्रेमचंद ने 1933 ई. में लिखा था। 

Q. 2 – हामिद ने मेले से क्या खरीदा था?

Ans : हामिद ने मेले से अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदा था। 

Q.3 – दादी ने हामिद को अकेले मेले में क्यों भेजा था?

Ans – हामिद की दादी बहुत बूढ़ी थी, वो इतना दूर नहीं जा सकती थी और उसे अपने पोते के लिए सेवइयां भी बनानी थी, ऐसे में उसने गांव के लोगो के साथ उसे अकेले मेले में भेज दिया। 

Q. 4 –ईदगाह कहानी का मूल भाव क्या है?

Ans – मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई यह कहानी दादी पोते के निस्वार्थ प्रेम, त्याग और समर्पण को प्रदर्शित करती है। 

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