शहर से थोड़ी दूरी पर राजकीय स्कूल का एक हॉस्टल था। हॉस्टल को लेकर अफवाह थी, की रात को 12 बजे के करीब हॉस्टल में एक आत्मा घूमती है। आज तक जिस किसी बच्चे ने उस आत्मा को देखा है, वो या तो आत्महत्या कर लेता है या पागल हो जाता है।
इसलिए खाना खाने के बाद 10 बजे तक सभी बच्चे अपने अपने रूम में चले जाते। कभी कभी रात को हॉस्टल में अजीब–अजीब आवाजें भी आती। जैसे कोई छत पर चल रहा है, हॉस्टल के ग्राउंड का हैंडपंप अपने आप चल रहा हो आदि। पर सभी अपने रूम में बैठे रहते, किसी की हिम्मत ही नहीं होती की वो बाहर निकल कर देखे।
एक बार कक्षा 8 में एक नया बैच आया। इस बैच में चार दोस्तों का एक ग्रुप भी था, जो बचपन से पक्के दोस्त थे और बहुत ज्यादा शरारती थी। इसी वजह से उनके माता पिता ने उन्हें बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने भेजा था। उन चार दोस्तों के नाम थे, ’राजू’, ’अंकुश’, ’सूरज’, और ’विशाल’।
ये चारों जब बोर्डिंग स्कूल आए, तो उन्हें हॉस्टल की भूतिया कहानियों के बारे में पता चला, पर उन्होंने इसपर गौर नहीं किया। उन्हें लगा कि सभी लोग मजाक कर रहे हैं और उन्हें डराने की कोशिश कर रहे हैं।
हॉस्टल का खाना नॉर्मल था, जो चारों दोस्तों को पसंद नहीं आया। ऐसे में सुरज बोला, “ यार क्या बकवास खाना है, इस दाल में न नमक है न मिर्च। सब्जी के नाम पर रोज सिर्फ लौकी और कद्दू ही खाने को मिलता है। पक गया हूं में हॉस्टल का खाना खा खा कर।”
विशाल, “ हां यार जब से घर से आएं है, अच्छा खाना सूंघा भी नहीं है। पर अब ऐसा नहीं होगा। मैंने एक प्लान बनाया है। आज शाम को हम सब हॉस्टल की दीवार पार करके गांव के ढाबे पर टेस्टी टेस्टी खाना खाएंगे।”
“पनीर लबाबदार, खोया पनीर, मलाई कोफ्ता……सोचते ही मेरे मुंह में तो पानी ही आ गया।” – राजू बोला।
तीनों क्या क्या खायेंगे ये डिसाइड ही कर रहे थे कि तभी अंकुश बोला, “गांव तो यहां से काफी दूर है, अगर हम पैदल गए तो आने में रात हो जाएगी। और हमारे गार्ड ने सख्त हिदायत दी है, की कुछ भी हो जाए शाम से पहले हॉस्टल आना है।”
तभी बाकी के तीनों दोस्त एकसाथ बोले, “ अरे यार ये सब कोरी अफवाह है, ताकि कोई बाहर न घूमे। पर आज हम बहुत मस्ती करने वाले हैं।” यह कहकर चारों दोस्त शाम होने का इंतजार करने लगे।
शाम के 4 बजे सभी दोस्त हॉस्टल की दीवार कूदकर बाहर निकल गए। हॉस्टल एक सुनसान जगह था, जहां बहुत कम वाहन आते थे। चारों ने पैदल चलने का निश्चय किया। 2 घंटे की मशक्कत के बाद चारों गांव पहुंच गए। इतने दिनों बाद मार्केट में आकर वो बहुत खुश थे। चारों ने जमकर खाना खाया और खूब मस्ती थी।
मस्ती मस्ती में कब पांच घंटे निकल गए पता ही नहीं चला। अब चारों दोस्तों ने हॉस्टल की राह पकड़ी। एक दूसरे की टांग खींचते हुए वे सुनसान रास्ते पर पहुंचें। रात के करीब 11 बज चुके थे। अंकुश बोला, “ यार, लेट हो गया है, गार्ड ने देख लिया तो वो हमें बहुत डांटेगा।”
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तभी राजू बोला, “अरे चिंता मत कर, इस हॉस्टल का कोई भी आदमी या स्टूडेंट रात के 10 बजे के बाद अपने कमरों से बाहर नहीं निकलता। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा हम चुपचाप अपने अपने कमरों में चले जाएंगे।”
चारों हॉस्टल के पास पहुंच चुके थे । रास्ते में एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था। चारों पेड़ के पास ही पहुंचे थे, तभी अंकुश को पीपल के पेड़ पर एक सफेद कपड़ों में आदमी लटका हुआ दिखाई दिया। उसने विशाल से कहा, “देखो वहां कोई है, जो हमे घूर के देख रहा है”।
विशाल ने ऊपर देखा पर उसे कुछ नहीं दिखा। तभी राजू बोला, “सूरज तुम मुझे पीछे से क्यों मार रहे हो?” यह सुनकर सभी चौंक गए, क्योंकि सूरज सबसे आगे चल रहा था। चारों ने एक साथ पीछे मुड़कर देखा, तो सफेद कपड़ों में एक आदमी डरावनी सी शक्ल के साथ उनके पीछे खड़ा था। यह वही भूत था जिसकी बाते हॉस्टल में होती थी।
भूत को देखकर चारों ने भागना शुरू कर दिया। अंकुश ने सुन था कि जब भूत सामने आए तो हनुमान चालीसा पढ़नी चाहिए। ऐसे में उसने भागते भागते तेजी से हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर दिया। अब चारों भाग रहे थे, और भूत उनके पीछे था। जैसे तैसे वो हॉस्टल की दीवार के पास पहुंचे, पर तब तक भूत उनके बहुत करीब आगया।
भूत उनपर हमला करने ही वाला था कि तभी हॉस्टल का गार्ड वहां आया, और उसपर पवित्र जल छिड़क दिया। उसके पास एक भभूत भी थी जिससे उसने हॉस्टल को चारों तरफ से कवर किया हुआ था। यह लाइन ही भूत को हॉस्टल में आने से रोकती थी। लेकिन अमावस्या जैसे दिनों में भूत का प्रभाव हॉस्टल में दिखता था।
गार्ड ने चारों दोस्तों को डांट लगाई और उन्हें हॉस्टल के अंदर ले गया। उस दिन चारों को पता चला, कि हर बात को मजाक में लेना उन्हें बहुत भारी पड़ सकता था। उस दिन के बाद चारों में से किसी ने रात को हॉस्टल की सीमा कभी पार नहीं की। हॉस्टल प्रशासन भी हर महीने वहां एक हवन करवाता है, ताकि उस आत्मा को हॉस्टल से दूर रखा जा सके।