कृष्ण और सुदामा: Friendship Story In Hindi

दोस्ती दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है। माता–पिता के बाद एक। दोस्त ही होता है, जो हमारी भावनाओं को समझता है, जिससे हम अपने दिल की हर बात शेयर कर पाते है। इसी दोस्ती को सेलिब्रेट करने के लिए आज हम आपके लिए लेकर आए है, Sacchi Mitrata Par Kahani। 

यह कहानी आपको दोस्ती का महत्व सिखायेगी, साथ ही आपको जानने को मिलेगा कि विश्वास और सच्ची दोस्ती कैसे मुश्किल समय में सहायक हो सकती है। तो चलिए शुरू करते हैं पढ़ना Friendship Story In Hindi…

कृष्ण और सुदामा की अटूट दोस्ती की कहानी 

द्वारका के बाहर एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण थे, जिनका नाम था सुदामा। बचपन में वह कृष्ण के साथ पढ़ा करते थे, जो अब द्वारका के स्वामी थे। सुदामा की गरीबी इतनी थी, कि वे अपने बच्चों को दो जून का भोजन भी नहीं दे पा रहे थे। बच्चों की यह हालत देखकर सुदामा की पत्नी बहुत परेशान थी। 

एक दिन उन्होंने अपने पति से कहा – “ हम भूखे रह सकते है, लेकिन अब बच्चों को कैसे समझाऊं। आप कुछ करते क्यों नहीं है?” 

पत्नी की बात सुनकर सुदामा बोला, “ मैं कोशिश कर रहा हूं, पर यह गरीबी है कि जाने का नाम नहीं लेती। अब में किसी के घर मांगने थोड़ी जा सकता हूं”। 

पत्नी ने सुदामा से कहा, ” आपको किसी और के पास जाने की क्या जरूरत है, आप हमेशा अपने ओर कृष्ण की दोस्ती के किस्से बच्चों को सुनाते हो। और आपके उस दोस्त ने आज तक आपको मुड़ कर नहीं देखा। कभी आपसे आपका हाल नहीं पूछा। क्या तुम थोड़ी सहायता के लिए अपने दोस्त कृष्ण के पा नहीं जा सकते हो? वहाँ कुछ भी माँगना नहीं पड़ेगा !”

सुदामा को पत्नी की बात थोड़ी कड़वी लगी, फिर उन्होंने सोचा – “मेरी पत्नी सही ही तो कह रही है, आखिर अपने मित्र से मदद मांगने में कैसी शर्म? मैं आज ही कृष्ण से मिलने उसकी नगरी द्वारका जाऊंगा। लेकिन में उसके लिए क्या उपहार लेकर जाऊं?” 

काफी देर सोचने के बाद सुदामा अपने घर की रसोई में गए, लेकिन उन्हें वहां कुछ भी नहीं मिला। ऐसे में सुदामा की पत्नी पड़ोस से एक। कटोरी चावल मांग लाई, और एक पोटली में बांध कर सुदामा को दे दिए। अगले दिन सुदामा द्वारका जाने के लिए निकले। 

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द्वारका की संपन्नता देखकर खुश हुए सुदामा

सुदामा जब द्वारका के गेट पर पहुंचे तो इतना भव्य गेट देखकर वो दंग रह गए। यह गेट सोने का बना था। सुदामा जब अंदर गए, तो उन्होंने देखा कि इस नगरी के सभी लोग सुखी और संपन्न थे। हर कोई खुश था, और श्री कृष्ण की तारीफ कर रहे थे। अपने मित्र की तारीफ सुनकर सुदामा बहुत खुश हुए और गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया। 

दरबानों ने उड़ाया सुदामा की दरिद्रता का मजाक 

लेकिन जब सुदामा कृष्णृके महल के पास पहुंचे तो दरबानों ने उन्हें रोक लिया, बोले– “अरे आगे कहा चले जा रहे हो, यहां तुम जैसे दरिद्र का। कोई काम नहीं है। चलो बाहर जाओ।” 

सुदामा ने जवाब दिया, “मुझे कृष्ण से मिलना है। वह मेरा बचपन मित्र है। आप एकबार उनसे जाकर कहिए कि सुदामा आया है।”

सुदामा की बात सुनकर दरबान हंसने लगा और बोला, – “क्यों मजाक कर रहे हो बाबा, एक। राजा का मित्र एक गरीब कैसे हो सकता है? जरा अपने वस्त्र तो देखो”। 

अपनी हालत देखकर सुदामा को शर्म आने लगी और वो वापस जाने लगे। तभी कृष्ण को सुदामा के आने की खबर मिली। यह सुनकर वो नंगे पांव सुदामा को लेने महल के द्वार पर पहुंचे।

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कृष्ण ने आंसुओं से धोए सुदामा के चरण 

सुदामा की हालत देखकर कृष्ण भावुक हो गए। वो उन्हें अपने महल में लाए और उनके चरण धोने लगे। सुदामा के चरण धोते–धोते कृष्ण रोने लगे, उनके आंसू सुदामा के पैरों पर गिरे। सुदामा ने कृष्ण को चुप करवाया। 

अब दोनों मित्र मिलकर सांदीपनी ऋषि के गुरुकुल में बिताए गए दिनों को याद करने लगे, कि कैसे वे शैतानी किया करते थे, कृष्ण सुदामा की पोटली से खाना खाता था। तभी कृष्ण ने पूछा, “मित्र आज तुम मेरे लिए क्या लाए हो?”

कृष्ण की बात सुनकर सुदामा को शर्म आने लगी, और वो अपनी पोटली छुपाने लगे। तभी कृष्ण ने पोटली खींची और उसमें से चावल निकालकर खाने लगे। अपने मित्रक प्रेम देखकर सुदामा की आंखों में भी आंसू आ गए। 

दोनों ने मिलकर खूब सारी बातें की और खाना खाया। कृष्ण का प्रेम देखकर सुदामा की हिम्मत ही नहीं हुई कि वे उनसे कुछ मांग पाए। दो दिन के बाद सुदामा वापस अपने घर के लिए निकलने। कृष्ण उन्हें नगर के द्वार तक छोड़ने के लिए आए। 

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कृष्ण ने बिना बोले समझी दोस्त की व्यथा 

घर जाते हुए सुदामा सोच रहे थे, “घर पर पत्नी पूछेगी कि क्या लाए ? तो क्या जवाब दूँगा ? पता नहीं वो कितना गुस्सा होगी।”

शाम होते होते सुदामा अपने घर पहुँचे, तो वे चौंक गए। सुदामा ने देखा कि उनकी झोपड़ी की जगह एक बड़ा सा महल जैसा घर है, जिससे उनकी पत्नी बाहर आई। उनकी पत्नी और बच्चों ने अच्छे कपड़े और गहने पहने हुए थे। 

सुदामा की पत्नी ने कहा, “ यह सब श्री कृष्ण की ही कृपा है, मैं उन्हें बहुत ही स्वार्थी समझती थी। पर आज मुझे पता चल गया, की वो ही आपके सच्चे मित्र हैं।” अपनी पत्नी की बात सुनकर सुदामा की आँखों में खूशी के आँसू आ गए। अब उनकी दरिद्रता दूर हो गई थी, और वो खुशी खुशी अपना जीवन जीने लगे। 

उम्मीद है सच्ची दोस्ती पर आधारित यह कहानी आपको पसंद आई होगी। कहानी अच्छी लगी हो तो इसे दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें। 

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