Short Educational Story In Hindi For Student With Moral: शिक्षा पर कहानी छोटी सी

बच्चों को जीवन का पाठ सीखने के लिए आप उन्हें तरह – तरह की कहानियां सुना सकते हैं। चाहे वो Moral Stories In Hindi हो या फिर Educational Story In Hindi । सभी कहानियां आपके बच्चों को अलग – अलग तरह की सीख देंगी। 

ऐसे में चलिए आज हम आपको एक ऐसी अनोखी कहानी पढ़ाते हैं, जिसमें आपको और आपके बच्चों को मेहनत करने का एक अनोखा संदेश मिलेगा। तो चलिए पढ़ना शुरू करते हैं…

वरदराज की कहानी: Educational Story In Hindi

ये उस जमाने की बात है, जब छोटे बच्चे पढ़ाई करने के लिए गुरुकुल में जाया करते थे। उस समय बच्चे गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में रहकर पढ़ाई किया करते थे, साथ ही साथ वो आश्रम की देखभाल किया करते थे। 

इन्हीं बच्चों में एक वरदराज नाम का विद्यार्थी भी था। दो साल पहले उसके माता – पिता ने उसे पढ़ने के लिए गुरुकुल में भेजा था। थोड़े ही दिनों में वह आश्रम में अपने साथियों के साथ घुलने – मिलने लगा। 

लेकिन पढ़ाई के मामले में वह बहुत ही ज्यादा कमजोर था। गुरुजी उसे कई – कई बार अध्याय पढ़ाया करते थे, लेकिन उसे न तो कुछ याद रहता और न ही कुछ समझता। ऐसे में वह अपने सभी दोस्तों के बीच मजाक का विषय बन गया। 

गुरुजी ने मानी हार 

दो साल से वह एक ही कक्षा में था। उसके सभी साथी अगली कक्षा में चले गए लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाया। ऐसे में उसके गुरूजी ने हार मान ली, और बोले –“बेटा वरदराज! मैने सारे प्रयास करके देख लिये है, लेकिन मैं तुम्हें पढ़ाने में सफल नहीं हो पाया। अब बेहतर यही होगा कि तुम यहां अपना समय बर्बाद मत करो। अपने घर जाओ और घरवालों की काम में मदद करो।”

अपने गुरु जी की बात का सम्मान करते हुए वरदराज ने घर जाने का निश्चय किया। अगले दिन गुरुजी की आज्ञा लेने गया, गुरुजी ने रास्ते के लिए सत्तू बांध दिया, ताकी भूख लगने पर वो उसे खा ले। 

वरदराज भारी मन से घर की ओर निकल गया गया। चलते – चलते दोपहर हो गई, रास्ते में उसे भूख लगी तो उसने गुरूजी के द्वारा रखा हुआ सत्तू निकाल कर खा लिया। पानी पीने के लिए उसने इधर उधर देखा उसने पाया कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलाएं कुए से पानी भर रही थी। पानी पीने के लिए वह कुएं के पास गया।

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कुए से मिली अनोखी सीख 

वरदराज ने देखा कि कुएं पर लंबी–लंबी लाइने बनी हुई हैं। यह देखकर उसने आश्चर्य से पूछा – “कुए पर इतनी लंबी और गहरी लाने किसने बनाई है।” 

वरदराज की बात सुनकर कुए के पास खड़ी सभी महिलाएं हंसने लगीं और बोली –“बेटे यह निशान हमने नहीं बनाएं। यह तो पानी खींचते समय इस रस्सी से अपने आप बन गए है।”

महिलाओं की बात सुनकर वरदराज सोच में पड़ गया। वह मन ही मन सोचने लगा – “जब बार–बार रगड़े जाने से कोमल सी रस्सी भी पत्थर पर इतने गहरे निशान बना सकती हैं, तो निरंतर अभ्यास से मैं विद्या ग्रहण क्यों नहीं कर सकता?”

लगातार मेहनत करके बदला अपना भविष्य 

ये सोचकर वरदराज ढेर सारे उत्साह के साथ वापस गुरुकुल गया और मेहनत करके पढ़ने लगा। आखिर कार इस बच्चे की मेहनत रंग लाई। सालों बाद यही मंदबुद्धि बालक वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बने। जिसने लघुसिद्धान्‍तकौमुदी, मध्‍यसिद्धान्‍तकौमुदी, सारसिद्धान्‍तकौमुदी, गीर्वाणपदमंजरी जैसे महान ग्रंथों की रचना की ।

सीख : निरंतर प्रयास से मुश्किल से मुश्किल कार्य को पूरा किया जा सकता है। 

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