Dasha Mata Ki Kahani: दशा माता की कहानी

चैत्र मास की दशमी तिथि को दशा माता का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दशा माता की कहानी पढ़ने से घर में सुख समृद्धि आती है, और दस गुना अधिक फल मिलता है।

दशा माता की पौराणिक कथा 

पुराने समय की बात है पृथ्वी पर नल नाम का राजा हुआ करता था, जिसकी रानी का नाम दमयंती था। होली दसा के दिन एक ब्राह्मणी रानी के पास आई और उसे पीला धागा दिया। रानी ने जब उसके बारे में पूछा तो ब्राह्मणी ने बताया, “यह दशा माता का डोरा है, आज के दिन इसे पहनने ने घर में सुख संपत्ति और अन्न धन आता है। अगर आप इसे पहन लेंगी तो आपके परिवार में कोई परेशानी नही आएगी। 

ब्राह्मणी की बात सुनकर रानी दमयंती ने पुजा करके विधि विधान से वो धागा अपने गले में पहन लिया। थोड़े दिनों के बाद राजा ने जब रानी के गले में धागा देखा तो, उन्होंने पूछा, “दमयंती, तुम्हारे पास इतने सारे सोने के गहने हैं तो तुमने यह धागा क्यों पहन रखा है।” रानी कुछ कह पाती उससे पहले ही राजा ने वह धागा उसके गले से निकाल कर फेंक दिया। दसा माता का अपमान देखकर रानी बहुत ज्यादा दुखी हो गई। 

अगले दिन जब राजा दो रहे थे, तो उनके सपने में दो औरतें आई। उनमें से एक उत्तर बोलती – ‘राजा! मैं यहां से जा रही हूं।’ वहीं दूसरी बोलती – ‘राजा मैं तेरे घर आ रही हूं।’ राजा नल को यह सपना 10 से 12 दिनों तक आया, जिससे वह बहुत ज्यादा परेशान हो गया। अपनी परेशानी कम करने के लिए राजा ने रानी को अपने सपनों की बात बताई। तभी रानी ने राजा से कहा “अबकी बार जब वो औरतें सपने में आए तो उनसे उनका नाम पूछिएगा”।

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राजा पर टूटा दुखो का पहाड़ 

राजा ने जब उनसे उनके नाम पूछे तो जाने वाली औरत ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ और आने वाली स्त्री ने ‘दरिद्रता’ बताया। दिन बीतते गए और राजा दरिद्र हो गया। रानी ने अपनी सहेलियों से मदद मांगी, पर उसकी हालत देखकर किसी ने उसकी मदद नहीं की। ऐसे में राजा अपने राजकुमार को लेकर जंगल की और चले गए और कंदमूल खाकर अपने दिन बीतने लगे। 

एक दिन राजकुमार दूध के लिए जिद करने लगा, तभी रानी ने राजा से कहा, “ यहां पास ही एक मालन रहती है। जो मुझे फूलों की माला देकर जाती थी। आप यूजीसी थोड़ा दही दूध मांग लाइए”। राजा मालन के पास गया पर गरीब राजा को उसने कुछ नहीं दिया। कुछ दिनों बाद सांप ने कुंवर को डस लिया और राजकुमार की मृत्यु हो गई। 

इसके बाद तो राजा पर दुखों का पहाड़ टूट गया। एक दिन राजा तीतर मार लाया तो भूने हुए तीतर उड़ गए। उधर राजा स्नान करके धोती सुखा रहा था, तो धोती उड़ गई। रानी ने अपनी धोती फाड़कर राजा को धोती दी। एक दिन राजा अपने दोस्त के घर गया। राजा के मित्र ने उसे एक कमरे में ठहराया, जहां उसके लोहे के औजार रखे हुए थे। दैवयोग से वे सारे औजार धरती में समा गए, और चोरी का इल्जाम राजा पर लगा। रास्ते में राजा की बहन का घर आया तो उनकी बहन ने उसे, सोने की थाली में खाना परोसा। राजा ने तो खाना खा लिया, लेकिन रानी ने थाल जमीन में गाड़ दिया। 

आगे चलकर राजा और रानी एक साहूकार से मिले जो उनके राज्य का व्यापारी था। उसने राजा को पहचान और पुरानी हवेली में उनके रहने का इंतजाम कर दिया। हवेली में साहूकार की पत्नी का हीरों का हार लटका हुआ था। पास ही की दीवार पर एक मोर अंकित था। हर रोज वह मोर ही हार निगलने लगा। यह देखकर राजा-रानी वहां से भी चले गए।

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इस तरह घूमते घूमते रानी परेशान हो गई और राजा से बोली, “अब हम किसी के भी घर में नहीं रुकेंगे। हम दोनों मजदूरी करके अपना पेट भर लेंगे” राजा इस बात पर सहमत हो गए और एक बाग के मालिक के यहां पर मजदूरी करने लगे। जैसे तैसे दोनों का काम चल रहा था, तभी रानी ने देखा कि बाग की मालकिन भी दसा माता की कथा सुन डोरा ले रही थी। 

रानी ने पूछा तो मालकिन ने बताया कि यह संपदा देवी का डोरा है, अगर तुम मन ने इसे धारण करोगी तो तुम्हारे सभी दुख समाप्त हो जाएंगे। रानी ने भी कथा सुनी और डोरा लिया। अपनी पत्नी के गले में डोरा देखकर राजा ने पूछा,” यह डोरा कैसा बांधा है?”।

इस पर रानी बोली- “यह वही डोरा है जिसे आपने एक बार तोड़कर फेंक दिया था और इसका अपमान किया था। उसी के कारण दसा देवी हम पर नाराज हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं करना। मुझे यकीन है अगर दशा मां सच्ची हैं तो फिर हमारे पहले के दिन लौट आएंगे।”

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राजा नल पर फिर से हुई दशा माता की कृपा 

अगले दिन राजा को फिर से वही सपना आया, जिसमें एक स्त्री बोली – “मैं जा रही हूं।” वहीं दूसरी कह रही थी – ‘राजा! मैं वापस आ रही हूं।’ राजा ने फिर से उनके नाम पूछे तो आने वाली स्त्री ने अपना नाम लक्ष्मी बताया और जाने वाली स्त्री ने अपना नाम दरिद्रता बताया। हालांकि लक्ष्मी ने एक शर्त भी रखी जिसमें कहा गया, की “जब तुम्हारी पत्नी डोरा लेकर दसा माता की कहानी सुनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊंगी।”

यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन बाग की मालकिन दमयंती के द्वारा बनाए गए हार वहां के राज्य की रानी के पास उपहार में लेकर गई। रानी ने हार देखकर पूछा, “यह हार किसने बनाए है?”

मालन ने कहा, “एक परदेसी है, जो मेरे पति के यहां पर काम करते है, ये हार उसी की पत्नी ने बनाए हैं”। रानी ने उनका नाम पूछा तो मालन ने नल-दमयंती बता दिया। यह सुनकर रानी तुरंत उससे मिलने गई, क्योंकि दमयंती उसकी पुत्री थी। 

राजमाता ने अपनी बेटी दमयंती से कहा, “बेटी तुम इस हालत में हो, तुमने पहले हमें क्यों कुछ नहीं बताया”। अपनी मां को देखकर रानी ने सारी बात रोते हुए अपनी मां को बता दी। रानी दमयंती की मां अपनी बेटी और दामाद को अपने घर लेकर गई, और उनकी खूब आवभगत की। दमयंती के पिता ने खूब लाव लश्कर और हाथी घोड़े देकर अपनी बेटी की विदाई की। 

राजा नल और रानी दमयंती वापस अपने राजमहलों की तरफ चले, तो रास्ते में सबसे पहले साहूकार का घर आया। दोनों फिर से उस पुरानी हवेली में रुके। साहूकार ने देखा कि दीवार पर चित्रित मोर हीरो का हार उगल रहा था, यह देखकर उसने राजा के पैर पकड़ लिए और माफी मांगने लगा। राजा बोला, “इसमें तुम्हारी गलती नहीं है, मेरे ही दिन बुरे चल रहे थे।”

थोड़ा आगे चलकर राजा की बहाने घर आया, इस बार राजा को महल में ठहराया गया। राजा ने जब जब गाड़ी हुई, थाली खोदी तो उसमें हीरे और मोती निकले। उसे अपनी बहन को गिफ्ट करके राजा अपनी रानी के साथ आगे चल दिए। 

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थोड़ा आगे चलने पर फिर से राजा के मित्र का घर आया, राजा ने फिर से उसी पुराने कमरे में रखने की जिद की। उसके मित्र को फिर से लोहे के औजार मिल गए। आगे चलकर राजा नदी किनारे पहुंचे, खान। राजा की धोती उड़ गई थी, वो एक पेड़ पर लटकी हुई मिलीं। राजा ने वह धोती पहनी और आगे बढ़े तो, उनका कुंवर वहीं पर खेल रहा था। 

राजकुमार ने अपने माता पिता के पैर छुए और उनके साथ चल दिया। राजा अपने राज्य में पहुंचे तो, मालन दूध लेकर आई। राजा बोला- ‘आज दूध लेकर आ रही हो, लेकिन उस दिन तुमने मेरे बच्चे के। लिए छाछ के लिए मना कर दिया था। खैर इसमें तुम्हारी गलती नहीं है, हमारे ही दिन खराब थे।”

थोड़ा आगे चलने पर, रानी की दासिया धन-धान्य से भरे थाल लिए गीत गाती आईं। राजा के ठाठ बाट अब पहले की तरह हो। यह सब दशा माता के डोरे की वहज से ही हुआ। 

राजा नल और रानी दमयंती पर कृपा करने से पहले माता ने उनपर कोप दिखाया। हे माता जैसा इनके साथ किया वैसा किसी के साथ मत करना, और बाद में जैसी कृपा की वैसी सबपर करना। 

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