दोस्तों, आपने बनारस के बारे में तो सुना ही होगा… बनारस सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक जुनून है।
यहाँ की नदियों में इश्क़ बहता है और हर गली में कहानियाँ छिपी हैं।
प्रेम की दुनिया
आज की कहानी भी बनारस शहर की ही है… जहाँ प्रेम नाम का एक 16 साल का लड़का रहता था। प्रेम छोटी जात का था, उसके पिता बनारस के घाट पर मृत शरीरों को जलाने का काम करते थे और प्रेम उनका इकलौता बेटा था। प्रेम बचपन से ही ऐसा लड़का था जो घर पर कभी टिकता ही नहीं था। उसकी माँ बेचारी… मैया यशोदा कृष्ण जी के आगे पीछे भागती थीं, वैसे ही प्रेम के पीछे भागती थी। लेकिन प्रेम कहाँ रुकने वाला… वह तो अपनी गली का कृष्ण था जिसने पूरी गली को सिर पर उठा रखा था।
राधा की दुनिया
उसी गली में एक लड़की रहती थी जिसका नाम राधा था। राधा जात से ब्राह्मण थी और उसके पिता एक वरिष्ठ पंडित थे, जिनके सामने पूरा समाज झुकता था। प्रेम की माँ उनके घर बर्तन भी साफ करने जाती थी और कभी-कभी प्रेम भी अपनी माँ के साथ राधा के घर गया था। लेकिन राधा और प्रेम की कभी कोई मुलाकात नहीं हुई थी। प्रेम अपनी माँ के साथ राधा के घर जाता और फिर चुपचाप लौट आता।
पहली मुलाकात – स्कूल में
इन दोनों की मुलाकात स्कूल में हुई थी, जहाँ पहली बार प्रेम ने राधा का चेहरा देखा था। दरअसल, राधा जिस स्कूल में पढ़ती थी वो स्कूल बहुत महँगा था, उसकी फीस इतनी थी कि उससे प्रेम के घर का साल भर का खर्चा चल जाए। प्रेम की माँ चाहती थी कि उसका बेटा भी अच्छे स्कूल में पढ़े। उसने पंडित जी से विनती की कि उनके बेटे को भी उस स्कूल में दाखिला मिल जाए। पंडित जी की तो पूरे शहर में चलती थी, उन्होंने प्रेम का उसी स्कूल में दाखिला करवा दिया और उसकी फीस भी माफ करवा दी।
अब प्रेम भी उसी स्कूल में जाने लगा जहाँ राधा जाती थी। दोनों एक ही कक्षा में थे, लेकिन यहाँ भी इनकी कभी मुलाकात नहीं हुई। प्रेम बैकबेंचर था, हमेशा सबसे पीछे बैठता था, जबकि राधा हमेशा आगे बैठती थी।
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ड्रामा बना प्यार की शुरुआत
कुछ महीने बीते…
फिर स्कूल में एक फंक्शन आया जिसमें एक ड्रामा होना था।
प्रेम को तो बचपन से फिल्मों का शौक था, उसे एक्टिंग अच्छी लगती थी।
जब क्लास में टीचर आई और पूछा –
“बच्चों, स्कूल में एक फंक्शन होने जा रहा है जिसमें एक ड्रामा होगा। आप में से कौन-कौन इसमें भाग लेना चाहता है?”
प्रेम ने सबसे पहले हाथ खड़ा किया।
उसके बाद बाकी बच्चों ने भी हाथ खड़े किए।
कुछ लड़कियों ने भी हाथ खड़ा किया, लेकिन राधा ने नहीं किया।
राधा की फ्रेंड्स ने उससे कहा भी –
“तू भी हाथ खड़ा कर ले, ड्रामा करने में मज़ा आता है…”
लेकिन राधा ने मना कर दिया।
उसे लगता था कि ये सब समय की बर्बादी है।
अगले दिन से रिहर्सल शुरू हो गई।
प्रेम की एक्टिंग देखकर मास्टर जी ने उसे लीड रोल दे दिया।
प्रेम कृष्ण का रोल कर रहा था और
राधा का रोल उसकी एक सहपाठी लड़की कर रही थी, जो राधा की दोस्त थी।
रिहर्सल के दौरान प्रेम और उस लड़की में दोस्ती हो गई।
लड़की ने राधा के बारे में भी बताया,
लेकिन तब प्रेम ने ध्यान नहीं दिया।
कुछ दिन बाद वह लड़की बीमार पड़ गई और अब रिहर्सल में नहीं आ रही थी।
प्ले में अब सिर्फ 10 दिन बचे थे।
मास्टर जी ने राधा से अनुरोध किया कि वह अपनी दोस्त की जगह राधा का रोल कर ले।
राधा मना नहीं कर पाई और हाँ कह दिया।
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दोस्ती से प्यार तक

अब राधा और प्रेम साथ में रिहर्सल करने लगे। दोनों के बीच दोस्ती हुई। प्रेम ने राधा को बताया कि वह उसके घर आता-जाता रहा है। राधा ने भी कहा –
“हाँ, कभी-कभी मैंने तुम्हें घर में देखा है।”
धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहरी होने लगी। अब प्रेम क्लास में सबसे पीछे नहीं, बल्कि राधा के साथ आगे बैठने लगा। प्ले भी हो गया, दोनों ने बहुत अच्छा अभिनय किया, खूब तारीफें मिलीं और कई ट्रॉफियाँ भी।
अब प्रेम रोज राधा के घर जाने लगा। साथ में खाते, हँसते और दिन महीनों में, महीने सालों में बीत गए।
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5 साल बाद…
अब दोनों कॉलेज में थे। लेकिन अभी भी वैसे ही रहते थे जैसे स्कूल में। राधा अब पहले से ज्यादा सुंदर हो गई थी। कॉलेज के सारे लड़के उसके पीछे घूमते थे, जो प्रेम को बिल्कुल पसंद नहीं था। कई बार इस बात पर प्रेम की लड़कों से लड़ाई भी हो गई थी। राधा को कहीं न कहीं पता था कि प्रेम उसे पसंद करता है, लेकिन वह जानबूझकर उसे जलाने के लिए और लड़कों को भाव देने लगी।
फिर एक दिन प्रेम ने तय किया कि अब वह सबकुछ राधा को बता देगा। उस दिन वह राधा को रोज की तरह स्कूटी पर छोड़ने जा रहा था, तभी रास्ते में स्कूटी रोक दी।
राधा: “क्या हुआ, स्कूटी क्यों रोकी?”
प्रेम डरते हुए बोला:
“राधा, तुम्हें कुछ बताना है…”
राधा: “क्या?”
प्रेम: “मैं जब पहली बार तुम्हें रिहर्सल में देखा, तभी से तुम मुझे अच्छी लगती हो… और मुझे बुरा लगता है जब कोई और लड़का तुम्हारे आसपास होता है। मैं नहीं चाहता कि तुम किसी और के साथ घूमो।”
राधा: “क्यों?”
प्रेम: “क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। बचपन से आज तक मैंने सिर्फ तुमसे प्यार किया है… और तुम सिर्फ मेरी हो। आई लव यू, राधा!”
राधा हँस पड़ी –
“गधे! कब से वेट कर रही थी मैं… तुझे क्या लगता है, मुझे पता नहीं था? मुझे तो कॉलेज में सब पता था कि तू मुझसे प्यार करता है। बताया क्यों नहीं?”
प्रेम: “मुझे डर लग रहा था…”
राधा: “बेवकूफ! कितने हिंट दिए मैंने तुझे! तू समझा ही नहीं। मैं भी तुझसे बचपन से प्यार करती हूँ, बस तेरे बोलने का इंतज़ार कर रही थी।”
प्रेम अवाक था… कुछ बोल नहीं पाया। तभी राधा ने ज़ोर से उसे गले लगा लिया और अब दोनों किसी और दुनिया में खो गए थे।
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जब घरवालों को प्रेम और राधा की बात पता चली
दोनों हमेशा एक-दूसरे का हाथ पकड़कर घूमते थे। स्कूटी पर राधा, प्रेम से चिपककर बैठती थी। कई बार दोनों को लोग साथ घूमते हुए भी देख चुके थे। बात अब पूरे गाँव में फैल चुकी थी।
राधा के घर भी बात पहुँच गई थी। पंडित जी बहुत नाराज़ हुए, क्योंकि प्रेम छोटी जात का था। ये बात पंडित जी की इज़्ज़त पर थी। उन्होंने राधा को खूब मारा और उसे घर में बंद कर दिया।
दूसरी तरफ, पंडित जी ने कुछ दंगाइयों को प्रेम के घर भेजा। उन्होंने वहाँ तोड़फोड़ की और प्रेम के पिता को भी बुरी तरह मारा।
झूठी पर्ची और प्रेम की मौत
एक दिन प्रेम के पास राधा की एक दोस्त आई और एक पर्ची थमा दी। पर्ची में लिखा था—
“प्रेम, हमारे प्यार को हमारे घरवाले कभी स्वीकार नहीं करेंगे। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है। हम दोनों भाग चलें और शादी कर लें। तुम आज रात 12 बजे काली माँ के मंदिर के पास आ जाना, मैं तुम्हारा इंतजार करूँगी…”
प्रेम की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने सोचा, यह पर्ची राधा ने भेजी है। वह तय समय पर मंदिर पहुँच गया और चारों तरफ राधा को ढूँढने लगा।
“राधा… राधा… तुम कहाँ हो? देखो मैं आ गया…”
लेकिन तभी पीछे से कुछ लोग आए और उसे पकड़ लिया। वे वही दंगाई थे जिन्होंने पहले उसके घर को तोड़ा था। उन्होंने बताया कि यह सब एक चालाकी थी। पंडित जी ने ही उसे मारने के लिए ये जाल रचा था, और वह पर्ची पूरी तरह झूठी थी।
उन्होंने प्रेम को बहुत मारा। उसके हाथ-पाँव तोड़े और फिर उसके पेट में छुरा घोंप दिया। मरते वक्त भी प्रेम बस राधा का नाम ले रहा था।
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राधा को जब प्रेम की मौत की खबर मिली
सुबह-सुबह प्रेम की माँ राधा के घर के बाहर ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी –
“मार दिया, मेरे इकलौते बेटे को मार दिया! ये ब्राह्मणों ने मेरे बेटे को मारा है!”
राधा को पहले यकीन नहीं हुआ। फिर वह छत से नीचे झाँकी तो देखा कि प्रेम की माँ, प्रेम की लाश के पास बैठी बेहाल होकर रो रही थी। प्रेम का शव उसी के घर के सामने पड़ा था। चारों ओर भीड़ जमा हो गई थी।
राधा यह सब देखकर डर गई और भागने लगी, लेकिन पंडित जी ने दरवाज़ा बंद करवा दिया और उसे एक कमरे में बंद कर दिया।
अब राधा उस कमरे में अकेली थी। वह ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी। उसके दिल पर भारी बोझ था — उसे लग रहा था कि प्रेम की मौत की वजह वही है।
उसने फैसला किया कि अब उसके बिना जीने का कोई मतलब नहीं। उसने अपने कमरे में फाँसी लगा ली।
पंडित जी के घर में भी तबाही मच गई।
प्रेम और राधा का जनाज़ा एक साथ उठाया गया…
राधा और प्रेम की मौत के बाद लोग पंडित जी के खिलाफ हो गए। उनके घर के बाहर भीड़ जमा हो गई और नारे लगने लगे –
“प्रेम और राधा को इंसाफ दो! इंसाफ दो!”
पुलिस आई और पंडित जी को गिरफ़्तार कर लिया।
गाँव वालों ने तय किया कि प्रेम और राधा का जनाज़ा साथ ही उठेगा।
पूरा गाँव उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुआ। दोनों का अंतिम संस्कार साथ हुआ… और आज उनकी प्रेम कहानी अमर हो चुकी है।
“जिन्हें समाज ने जुदा किया, उनकी रूहें साथ जलकर अमर हो गईं — प्रेम और राधा, अब कभी अलग नहीं होंगे।”
संदेश (Moral):
धरम और जाति के नाम पर हम इंसान अक्सर इंसानियत भूल जाते हैं। भगवान ने तो सिर्फ इंसान बनाया था, लेकिन उन्हीं इंसानों ने उस बनाने वाले को बाँट दिया। यह कहानी हमें सिखाती है कि प्रेम को समझना और उसका सम्मान करना ही सच्चे मानव धर्म का काम है।
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