Sad Love Story In Hindi: सच्चे प्यार की अधूरी दास्तान

इलाहाबाद की शांत गलियों में सुधा और अमित की प्यार की कहानी आज भी काफी चर्चित है। यह एक Sad Love Story In Hindi है, जहां दोनों का प्यार मुकम्मल नहीं हो पाया। लेकिन अमित ने सुधा के प्यार को सदा के लिए अपने मन में बसा लिया। इस दुखभरी प्रेम कहानी की शुरुआत कैसे हुई, चलिए जानते हैं…

सुधा और अमित की मुलाकात – एक अनोखी शुरुआत

सुधा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर अंकुश शुक्ला की बेटी थी। वही अमित इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहा था। डॉक्टर शुक्ला अमित को बहुत पसंद करते थे। बचपन से ही वे उसे जानते थे। अमित ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए काफी मेहनत की थी। 

अमित काफी सालों से डॉक्टर शुक्ला के घर आया जाया करता था। इसी दौरान सुधा और अमित गहरे दोस्त बन गए। सुधा बिना एक शब्द भी कहे बिना अमित के मन को पढ़ लेती थी। बचपन की हँसी, किताबों पर बहस, चाय की प्याली में बूँदें और शाम की पीली रोशनी में दोनों की खामोशियाँ – सब कुछ जैसे एक-दूसरे के बिना अधूरा था। 

सुधा और अमित को हुआ एक दूसरे से प्रेम

अमित हमेशा सुधा की पढ़ाई में मदद किया करता था। उसे कही बाहर जाना हो तो वो भी अमित की ही जिम्मेदारी थी। ऐसे में कभी दोनों के रिश्ते को लेकर डॉ शुक्ला के मन में कोई विचार नहीं आया था। सुधा और अमित भी मन ही मन एक दूसरे से प्रेम तो करते थे, लेकिन कभी उन्होंने इस बात को स्वीकारा नहीं था। 

अमित को पता था कि वह एक गरीब ब्राह्मण है, जबकि सुधा एक सम्मानित परिवार की इकलौती संतान है। वह डॉक्टर शुक्ल की बेटी है, जिन्होंने उसे बेटा मानकर पाला है। शायद यही वो रिश्ते की गरिमा थी, जो अमित को सुधा अपने करीब लाने से रोकती थी। 

लेकिन जब एक दिन सुधा के लिए रिश्ता आया, तो अमित अंदर तक टूट गया। ये पहली बार था जब सुधा ने अमित से अपने प्यार का इजहार किया हो। 

सुधा ने अमित से कहा – “बाबूजी ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है। लड़के का नाम विशाल है, ओर वह कानपुर का बहुत बड़ा वकील है।” 

अमित का मन सुन्न हो गया, पर फिर भी मुस्कुराकर बोला, “बहुत अच्छा किया उन्होंने, तुम बहुत खुश रहोगी।”

सुधा उसे देखकर बोली – ये झूठी मुस्कान बाबूजी को दिखाना, में भी जानती क्या कि तुम मुझे पसंद करते हो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती हूं। तुम बाबूजी से जाकर बात क्यों नहीं करते। 

अगर तुम बात नहीं कर पा रहे हो तो तो मैं उनसे बात करती हूं ,वो अपनी। इकलौती लड़की की बात जरूर सुनेंगे। लेकिन अमित ने उसे समाज और पिता का वास्ता देखकर रोक लिया। 

यह भी पढ़ें: गांव की सच्ची देसी प्रेम कहानियां

डॉ शुक्ला ने तय किया सुधा का विवाह

अमित डॉ शुक्ला को बहुत अच्छे से जनता था। बातों बातों में कई बार उसने प्रेम विवाह पर उनके विचार जानने का प्रयास किया था। और हर बार उसे यही पता चला कि वे कभी भी प्रेम विवाह के लिए राजी नहीं होंगे। 

अमित सुधा की आत्मा से प्रेम करता था और वो कभी नहीं चाहता था कि उसकी वजह से सुधा और डॉ शुक्ला के बीच दरार आए। 

आखिरकार सुधा का विवाह तय हो गया। विवाह के दिन, जब विदाई हो रही थी, सुधा की आँखें अमित को ढूँढ रही थीं, लेकिन वह कहीं दिखा । वो जानती थी – अमित की अनुपस्थिति ही उसका सबसे बड़ा विदाई उपहार थी।

सुधा चली गई, पर अमित के भीतर एक खालीपन छोड़ गई। यह ऐसा खालीपन जिसे वह भरना चाहता था, पर सुधा के अलावा उसे कोई और नहीं भर सकता था। वह आत्मविहीन हो गया। 

अमित अब डॉक्टर शुक्ला के यह ही रहने लगा था। सुधा और अमित के अलावा उनका कोई और था भी नहीं। अब अमित दिन रात किताबों में खोया रहता। उसकी की पीएचडी पूरी हो गई और वह प्रोफेसर बन गया। दिनभर वह कॉलेज में लेक्चर अटेंड करता, और उसकी रातें तन्हाइयों में कटती। 

समय बीतता गया। सुधा ने अमित को कई पत्र भेजे, लेकिन उसने एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया। शायद उसे लगने लगा था कि सुधा उसे इतना भी प्रेम नहीं करती थी कि वह उसके लिए सब कुछ छोड़ देती। इसी विचार ने सुधा के प्रति के प्रेम को काम कर दिया था। 

एक साल बीत गया था। इस बीच सुधा मुश्किल से एक दिन के लिए ही अपने मायके आई होगी। लेकिन एक दिन अमित किसी मीटिंग से लौट रहा था, तभी उसके सामने से एक कार गुज़री – और उसमें बैठी आँखें उसी की तरफ देख रही थीं। कार शुक्ला भवन में आकर रूकी। कार में सुधा थी। 

यह भी पढ़ें: एक अजनबी प्यार की कहानी

अमित बना सुधा के लिए गुनाहों का देवता

अमित ने एक साल बाद सुधा को देखा था, वही आँखें, वही मुस्कान, लेकिन अब सुधा की आंखों में अब एक अजीब सा सन्नाटा था। सुधा ने जानती थी कि अब वह विवाहिता थी, पर उसमें वही आत्मा थी जो अमित से जुड़ी थी।

अमित ने सुधा से पूछा – “तुम खुश हो?”

“तुम्हारे बिना कभी नहीं हो सकती,” सुधा ने मुस्कुराते हुए कहा।

उस दिन पहली बार अमित को अहसास हुआ कि, जिस प्रेम को उसने समाज के बंधनों के चलते त्याग दिया था। वो अब उसी प्रेम का गुनाहगार बन गया है। डॉ शुक्ला के बारे में सोचते–सोचते उसने सुधा के साथ कितना बड़ा अन्याय कर दिया था। 

अमित ये सब सोच ही रहा था कि सुधा उठी, बोली – “अमित तुम चिंता मत करो, मुझे अब कुछ नहीं कहना है। अब मैं जानती हूँ, तुमने मुझसे कितना प्रेम किया। हमारा प्रेम शरीर का दिखावा नहीं बल्कि मन से मन का मिलन था। लेकिन बस मेरे एक सवाल का जवाब दे दो, क्या तुमने एक बार भी चाहा था मेरे साथ जीवन बिताना?”

सुधा के इस सवाल पर अमित चुप रहा। उसकी जुबान पर शब्द नहीं थे, पर आँखों में जवाब था। अमित हमें जवाब देना चाहता था पर वह नहीं दे पाया, क्योंकि उसे पता था कि यह सुधा अब पहले वाली सुध नहीं है अब उसकी शादी हो चुकी है और वह किसी और की अमानत है। 

सुधा घर के अंदर चली गई। पर अमित वहीं बैठा रहा – एक मुस्कान के साथ। क्योंकि अब वह जान चुका था की – प्रेम की पूर्णता साथ रहने में नहीं होती, बल्कि उस आत्मिक जुड़ाव में होती है, जो समय, दूरी और समाज से परे होता है। उनकी प्रेम कहानी दुख भरी जरूर थी, लेकिन अगले जन्म उन्होंने फिर से मिलने की कसमें खाई थी। 

पढ़िए हमारी कुछ और दिल को छू जाने वाली प्रेम कहानियाँ:

Leave a Comment