भूतिया हवेली की रहस्य्मयी कहानी: जाने कैसे विवेक ने सालों से भटक रहे भूत को मुक्ति दिलाई। 

भारत में कई जगहों पर ऐसी हवेलियों की कहानियां सुनी जाती हैं, जहां अजीब घटनाएं होती हैं। कुछ को अफवाह माना जाता है, तो कुछ में सचाई छुपी होती है। आज हम आपको भानगढ़ गांव की एक भूतिया हवेली की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जहां विवेक नाम के एक लड़के ने सालों से भटक रही आत्मा को मुक्ति दिलाई

इस डरावनी कहानी में आगे बढ़ने से पहले, सोचिए – अगर आपको एक सुनसान हवेली में अकेले जाना पड़े, तो क्या आप हिम्मत कर पाएंगे?

भानगढ़ की रहस्यमयी हवेली – जहां जाने से लोग डरते थे!

The Mansion

भानगढ़ नाम का एक गांव था, जहां सभी लोग हंसी खुशी रहा करते थे। गांव के बाहर जंगलों के पास एक बहुत बड़ी हवेली थी, जो देखने में बहुत सुंदर थी। लेकिन सालों से इस हवेली में कोई नहीं गया था। दिन में दिखने वाली खूबसूरत हवेली, रात होते ही डरावनी बन जाती थी। लोगों का कहना था कि इस हवेली में भूत रहता है, जो शाम के समय लोगों को डराता है। लेकिन एक दिन हवेली में कुछ ऐसा हुआ की हर कोई चौंक गया, इस घटना ने हवेली की प्रति हर किसी का मन बदल दिया। अखिल उस रात हवेली में क्या हुआ था ? चलिए जानते हैं –

दरअसल, हवेली के पास एक बहुत बड़ा खेल का मैदान भी था, जहां गांव के बच्चे मैच खेलने आते थे। एक दिन विवेक भी अपने दोस्तों के साथ यहां क्रिकेट खेलने आया। सूरज ढलने लगा था। गांव के बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। तभी अचानक, विवेक ने जोरदार शॉट मारा। गेंद छक्का होकर सीधे भूतिया हवेली के अंदर जा गिरी। ये देखकर सभी बच्चे डर गए, क्योंकि बचपन से उन्होंने भूतिया हवेली के बारे में डरावनी कहानियां सुनी थी । 

कोई भी बच्चा अकेले हवेली के पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। लेकिन विवेक बहुत ही साहसी था। उसने कहा, “मैं गेंद ले आऊंगा। डरने की क्या बात है? सभी बच्चों ने विवेक को मनाने की कोशिश की, लेकिन वह अड़ा रहा। और सावधानी से वो हवेली के अंदर चला गया। 

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हवेली में भूत का सामना कैसे करेगा विवेक ?

Vivek The Brave Boy

हवेली काफी सालों से वीरान पड़ी थी, तो अंदर की तरफ  काफी अंधेरा छाया हुआ था। चारों तरफ मकड़ी के जले थे, हवा ठंडी थी और अजीब सी आवाजे सुनाई दे रही थीं। ये सब देखकर विवेक को डर तो लगा पर, भगवान का नाम लेकर पूरी हिम्मत के साथ वो आगे बढ़ने लगा। विवेक ने अपने मन में ठान रखा था कि वो यहां से गेंद लेकर ही जाएगा । 

विवेक जैसे ही आगे की तरफ बढ़ा, उसे एक बुजुर्ग साया दिखाई दिया। वह बहुत दुखी लग रहा था। बुजुर्ग ने धीमी आवाज़ में विवेक से कहा, “क्या तुमने मेरा बेटा देखा है? मैं काफी समय से उसका इंतजार कर रहा हूं, क्या तुम उसे ढूंढकर ला दोगे। 

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क्या है खोए हुए बच्चे का सच ? 

बुजुर्ग की बात सुनकर विवेक ने कहा, “मैंने आपके बेटे को तो नहीं देखा,  मैं यहां गेंद लेने आया हूं। बुजुर्ग ने कहा, “मेरा बेटा भी क्रिकेट खेलने का बहुत शौकीन था। शायद उसने यहीं गेंद मारी होगी।” ये सुनकर विवेक ने महल में चारों ओर देखा, पर उसे कोई भी बच्चा दिखाई नहीं दिया। बच्चे को खोजते – खोजते उसे एक पुराना कमरा दिखाई दिया, जिसका दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था। कमरे के अंदर धूल की परत जमी हुई थी।

विवेक ने साहस जुटाकर कमरे में झांका। कमरे में एक संदूक था, जिसमें क्रिकेट बैट, बॉल, क्रिकेट खेलने का सामान ओर एक खत था। इस खत में बच्चे की मौत का जिक्र था। खत में लिखा था कि बीमारी वजह से बच्चे की मौत हो गई थी। विवेक को ये पढ़कर बहुत दुख हुआ और वो उसे लेकर उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास गया। 

बुजुर्ग व्यक्ति को जब ये पता लगा कि सालों पहले ही उसके बच्चे की मौत हो गई थी, जिसका वो इंतजार कर रहा था । तो वो बुरी तरह से टूट गया और जोर जोर से रोने लगा। बुजुर्ग व्यक्ति को रात देख विवेक ने उसे सांत्वना दी और चुप करवाया। विवेक की दरियादिली देखकर बुजुर्ग ने कहा – इतने सालों से मैं अपने बच्चे का इंतजार कर रहा था, ओर अब वो यह नहीं है तो मुझे भी यह से जाना होगा। आज से ये हवेली तुम्हारे सभी दोस्तों के लिए खुली है तुम जब चाहे यह आकर खेल सकते हो। ये कहकर बुजुर्ग वहां से चला लगा और थोड़ी दूर जाकर वो गायब हो गया। 

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विवेक की बहादुरी से हवेली को मिली भूत से मुक्ती

विवेक हवेली से अपनी गेंद लेकर बाहर आ गया। जैसे ही विवेक बाहर आया तो उसने हवेली के बाहर एक तस्वीर देखी जिस पर माला लटकी हुई थी। ये तस्वीर उसी बुजुर्ग व्यक्ति की थी जिससे विवेक बात कर रहा था। विवेक को पता चल गया था कि जिस व्यक्ति से वो बात कर रहा था वो असल में भूत था। वो भूत अपने बेटे की मौत से अनजान था, और सालों से उसके इंतजार में भटक रहा था। 

हवेली से बाहर आकर विवेक ने ये बात अपने सभी दोस्तों और गांव वालों को बताई । अब हवेली में कोई भी भूत नहीं था। हर किसी के मन में अब हवेली को लेकर विचार बदलने लगे थे। लोगों ने अब हवेली में आना जाना शुरू कर दिया था । बच्चे भी वह रोजाना खेलने जाने लगे थे। जिस हवेली के बारे में डरावनी कहानी प्रचलित थी, अब उसी हवेली में एक पिता के इंतजार की कहानियां सुनाई जाने लगीं थीं। ये सब देखकर विवेक बहुत खुश था।

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